Friday, May 5, 2023

सूर्य या चंद्र की खगोलीय घटना होने की संभावना

सुमित कुमार श्रीवास्तव  (वैज्ञानिक अधिकारी)

भारत वर्ष में उपच्छायी चंद्र ग्रहण दिनांक 5 मई 2023 को रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई देगा। इसे ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, साउथ/ईस्ट अमेरिका, यूरोप और सम्पूर्ण एशिया में देखा जाएगा । अगला सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर को तथा अगला चंद्र ग्रहण दिनांक 29 अक्टूबर 2023 को आंशिक चंद्र ग्रहण होगा ।

चंद्रमा पृथ्वी का एक एकलौता प्राकृतिक उपग्रह है, जिसे आसानी से पृथ्वी से रात के समय देखा जा सकता है और करीब होने के कारण रात्रि आकाश का सबसे चमकदार पिंड होता है। चंद्रमा की अपनी स्वयं की कोई रोशनी नहीं होती है और यह सूर्य की रोशनी से ही प्रकाशमान होता है । पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और उसी तरह से चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए सूर्य की परिक्रमा करता है। चंद्रमा का परिक्रमा पथ पृथ्वी के तल से लगभग 5° झुका हुआ है ।

इन तीनों पिंडो के एक दूसरे की परिक्रमा करने के कारण कभी कभी तीनों पिंड एक सीधी रेखा में और एक ही तल संरेखित हो जाते है। इस स्थिति को सिज्गी (Syzgee) की स्थिति कहते है । इस स्थिति में या तो सूर्य ग्रहण की खगोलीय घटना घटित होती है या चंद्र ग्रहण की खगोलीय घटना घटित होती है ।

चंद्र ग्रहण में सूर्य एवम् चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है जिसके फलस्वरूप पृथ्वी की छाया पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर पड़ती है । जिससे चंद्रमा की रोशनी क्षीण होती नजर आती है या प्रकाश के पृथ्वी के वायुमंडल से प्रकीर्णन के कारण सुर्ख लाल रंग का चंद्रमा भी नजर आता है ।

सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है। इस प्रकार पृथ्वी की छाया भी दो प्रकार की होती है ।

1. अंब्रा या मुख्य छाया या प्रच्छाया     2. पेनंब्रा या उपच्छाया


पृथ्वी की मुख्य छाया शंकु के आकार का अंधकार मय क्षेत्र होता है। छाया के अंदर और सबसे गाढ़ा भाग है, जहां प्रकाश स्रोत पूरी तरह से उस पिण्ड या वस्तु से अवरुद्ध है। यदि इस छाया के संपर्क में चंद्रमा आता है तो आंशिक या पूर्ण चंद्रग्रहण लगता है ।

जबकि पेनंब्रल या उपच्छाया, वह क्षेत्र है जिसमें प्रकाश स्रोत केवल आंशिक रूप से ढका होता है। इसका क्षेत्रफल अम्ब्रा के क्षेत्रफल से बड़ा होता है। पेनंब्रा अम्ब्रा को चारों और से घेरा होता है । हल्की छाया वाला क्षेत्र पेनंब्रा क्षेत्र होता है । ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है।

उपच्छायी चंद्रग्रहण में चंद्रमा के प्रकाश में नग्न आंखों से कोई अंतर दिखाई नही देता । इस घटना को रिकॉर्ड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमेट्री मैथड का प्रयोग करते है और प्रकाश के छोटे छोटे अणुओं या फोटोंस की संख्या,ग्रहण से पूर्व तथा ग्रहण के समय, को काउंट कर तथा तुलना कर के ये बताते है कि ग्रहण में कितने प्रतिशत प्रकाश कम हुआ है । चूंकि प्रकाश कम होने का प्रतिशत बहुत ही ज्यादा कम होता है अतः जन सामान्य को नग्न आंखों से चंद्रमा के प्रकाश में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है। 

ज्योतिष में भी इस प्रकार के ग्रहण का कोई सूतक नहीं माना जाता । अगला पेनंबरल चंद्र ग्रहण 24 - 25 मार्च 2024 तथा 20-21 फरवरी 2027 को घटित होगा ।





Monday, April 17, 2023

"कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान"

अम्बेश तिवारी
कानपुर में जन्मे गीतकार, कवि , लेखक और रंगकर्मी अम्बेश तिवारी एक निजी संस्थान में एकाउंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।  अम्बेश नौकरी के साथ साथ विगत 15 से अधिक वर्षों स्वतंत्र लेखन का कार्य भी कर रहें हैं। इसी के अम्बेश रंगमंच में अभिनय भी करते हैं और सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर सोशल मीडिया और अपने ब्लॉग के जरिये विचार रखते हैं।



अजब, अनूठा, अलबेला सा कानपुर है मेरी जान!

कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !

मुँह में पान, दिलों में मस्ती, यहाँ के लोगों की पहचान,

कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!


झाँसी की रानी का बचपन इस मिट्टी ने सींचा था,

इसी धरा पर भगतसिंह ने क्रांति पाठ भी सीखा था !!

विद्यार्थी जी के प्रताप से, देशभक्ति का बिगुल बजा,

वीर चन्द्रशेखर ने यहीं पर, नया क्रांति इतिहास रचा !

नमन हमारी पुण्य-भूमि, यह कानपुर मेरा अभिमान!!


कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!!

सीता माँ की तपोभूमि जो, तपेश्वरी है, पावन धाम,

पनकी वाले बाबा की जय, बन जाते सब बिगड़े काम !

गँगा मईया के घाटों पर, अविरल रस धारा बहती,

हर हर महादेव बम भोले,  स्वरलहरी गुंजित रहती !!

यहाँ शिवालय के जयकारों, से होती हर सुबह प्रणाम !!

कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!


उद्योगों का केंद्र बना यह, और ज्ञान का है उपवन,

रोजगार मिलता लोगों को, शिक्षा से बदले जीवन !!

कला और विज्ञान ने मिलकर, अमन शान्ति पैगाम दिया !!

यहाँ की प्रतिभाओं ने दुनिया, भर में ऊँचा नाम किया !

आई आई टी और जीएसवीएम, दोनों अपने देश की शान !

कानपुर में बसा हुआ है, एक छोटा सा हिंदुस्तान !!


जे के मंदिर, ग्रीन पार्क हो, या हो फूल बाग की छाँव

मोती झील की सुन्दरता में, टिकते नहीं धरा पर पाँव !

कभी न रुकते, कभी न झुकते, चलते रहते दिन और रात!

कनपुरिया मस्ती में जीते, चाहे कैसे हों हालात !!

दिल में हो तूफान भले पर चेहरे पर रहती मुस्कान ! 

कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!


अजब, अनूठा, अलबेला सा कानपुर है मेरी जान!

कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !

मुँह में पान, दिलों में मस्ती, यहाँ के लोगों की पहचान,

कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !


गीत सुनने के लिए क्लिक करें |



Friday, April 14, 2023

God saw you getting tired (A poetic tribute)


Sudhanshu Singh 


(With these lines I show my  gratitude and homage towards you my respected Nana ji ! You are  always an  inspirational source for me and I know you are always with us.)



Late Dr Rajendra Bahadur Singh
( 01.07.1951- 14.04.2019)

God saw you are getting tired

And a cure Was not to be

 So he puts his arms around you

And whispered "come to me"

With tearful eyes we watch you

And saw you passed away

Although we loved you dearly

We could not make you stay

A golden heart stop beating

Hardworking hands to rest

God broke our heart to prove to us 

That he only takes the best



Friday, March 10, 2023

ब्रेकिंग न्यूज़ ट्रेन का इंजन खराब होने से यात्री परेशान

ब्रेकिंग न्यूज़ ट्रेन का इंजन खराब होने से यात्री परेशान गाड़ी संख्या 22987 अजमेर टू आगरा जाने वाली ट्रेन इंजन खराब (वसीम अंसारी)( जयपुर )

खातीपुरा स्टेशन पर ट्रेन का इंजन बदलने की प्रक्रिया चालू है इंजन खराब होने से यात्री बहुत ज्यादा परेशान है  2 घंटे के आसपास हो रहे हैं और ना जाने कितनी देर लगेगी लोको पायलट कोई भी सही सूचना नहीं दे रहा है जिससे यात्री को परेशानी ना होने पाए अब देखते हैं कितनी देर में दूसरा बदलेगा  इंजन अजमेर टू आगरा गाड़ी संख्या 22987 कब तक लगेगा और सही समय तक कौन अपने घर तक पहुंचेगा |


Sunday, February 19, 2023

'Communication Today' की Trending चर्चाओं में शुमार हुआ चर्चित "Chat GPT"

मीडिया शिक्षा में कई दशकों से सक्रिय संस्था कम्युनिकेशन टुडे के वेबिनार अभियान के अंतर्गत ' ChatGPT: Advantages and Limitations Uncovered ' विषय पर 72वीं वेबिनार का आयोजन किया गया |

वेबिनार को संबोधित करते हुए इंडिया टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट, नोएडा के डीन एवं डायरेक्टर डॉ डी जे पति ने कहा की भविष्य तकनीक का है। कृत्रिम बौद्धिकता के इस दौर में चैट जीपीटी जैसे मॉडल जहां समय की बचत करेंगे वहीं उत्पादन में भी वृद्धि करेंगे । पूर्वाग्रह से ग्रस्त डाटा की चुनौती के बीच नैतिक मूल्यों के हृसॎ की ओर भी उन्होंने संकेत किया। उनका मानना था कि आने वाले समय में मीडिया उद्योग के क्षेत्र में एक नई क्रांति का सूत्रपात होगा।

 सुरेंद्रनाथ कॉलेज, कोलकाता के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ उमाशंकर पांडे ने चैट जीपीटी की कार्य पद्धति की चर्चा करते हुए उसके तकनीकी एवं व्यापक व्यावहारिक पहलुओं पर गंभीरता से प्रकाश डाला। उन्होंने विस्तार से समझाते हुए इस भाषाई मॉडल में निहित संभावनाओं की चर्चा करते हुए मीडिया तथा शोध अनुसंधान में इसकी उपयोगिता की संभावनाओं और चुनौतियों की ओर संकेत किया।

आईआईटी गुवाहाटी के स्नातक एवं मशीन लर्निंग इंजीनियर नमन जैन ने चैट जीपीटी के विकास क्रम पर बात करते हुए प्रारंभिक स्तर के रोजगार खत्म होने की आशंका प्रकट की। उनका मानना था इसमें विश्वसनीयता के प्रति हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो सकते और न ही इन माध्यमों में आलोचनात्मक क्षमता अभी विकसित हो सकी है। 

भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व प्रोफेसर डॉ हेमंत जोशी ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि अब हम मीडिया के क्षेत्र में भी एनएलपी की बात करने लगे हैं। उनका मानना था कि वर्ब मैपिंग (Verb Maping) अभी भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। 

वेबिनार का संचालन करते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के जनसंचार केंद्र के पूर्व अध्यक्ष तथा कम्युनिकेशन टुडे के संपादक प्रो संजीव भानावत ने विषय प्रवर्तन भी किया। प्रो  भानावत ने कहा कि चैट जीपीटी हमारी रचनात्मक शक्ति को प्रभावित कर सकता है। उनका मानना था कि हर नई तकनीक अपने साथ चुनौतियां और संभावनाएं ले करके आती है लेकिन चैट जीपीटी इंटरनेट की दुनिया में गेमचेंजर साबित होगा।

तकनीकी पक्ष आईआईएमटी यूनिवर्सिटी मेरठ की मीडिया शिक्षक डॉ पृथ्वी सेंगर ने संभाला।

भारतीय जनसंचार संस्थान के डॉ राकेश गोस्वामी, राजस्थान विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ जोया चक्रवर्ती तथा कानपुर के छत्रपति शाहूजी विश्वविद्यालय की डॉ रश्मि गौतम ने भी इस चर्चा में भाग लिया।


वेबीनार का विडियो देखने के लिए क्लिक करें|


Saturday, February 11, 2023

स्मृति विशेष : याद किए गए स्वतंत्रता आंदोलन के अप्रतिम योद्धा डॉ गया प्रसाद कटियार

शहीद ए आजम सरदार भगतसिंह के साथी क्रांतिकारी डॉ. गया प्रसाद कटियार के 30वीं स्मृति दिवस का आयोजन कल 10 फरवरी 2023 को बुद्धा हॉस्पिटल, इंद्रानगर, कल्याणपुर, कानपुर में ऐलान ए इंकलाब व शहीद स्मृति समिति द्वारा किया गया ।

प्रो बृजेश 
इस अवसर पर प्रो बृजेश सिंह ने क्रांतिकारी डॉ. गया प्रसाद कटियार की कुर्बानी को स्मरण किया और बताया कि सरदार भगत सिंह व चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों से नजदीकी तौर से जुड़े रहे डॉ. कटियार एक महान क्रांतिकारी थे और उनको अंग्रेज सांडर्स हत्याकांड में उम्र कैद की सजा हुई थी और उन्हें भारत भूमि से दूर अंडमान द्वीप की कालापानी जेल में भेज दिया गया था। उन्होंने 17 वर्ष तक जेल की यातना सहन की 

प्रखर श्रीवास्तव ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भी वे आजीवन शोषित पीड़ित जनता के लिए लड़ते रहे और स्वतंत्र भारत में भी 2 वर्ष तक जेल में रहे।

कार्यक्रम में क्रान्तिकारी डॉ. गया प्रसाद कटियार के परिजनों को सम्मानित भी किया गया।

पुत्र - क्रांति का हुआ सम्मान 
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजबहादुर ने की व संचालन नागेंद्र कन्नौजिया ने किया।

वक्ताओं में उषा रानी कोरी, देव कबीर, अशोक शुक्ला, उमाकांत विश्वकर्मा, मान सिंह, परमेश्वर दयाल कन्नौजिया, अनूप कटियार, बृजेंद्र सिंह, मीरा देवी, संजय पटेल, आदि वक्ताओं ने प्रमुख रुप से अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर सुभाष चन्द्र, विपुल, देवेंद्र, विकास, अमित, चौधरी ओमप्रकाश, रेनू, पद्म सिंह, रिचा कन्नौजिया, शरद, बलराम, नंदकिशोर आदि उपस्थिति थे।


कार्यक्रम में मौजूद श्रोता 


Sunday, December 11, 2022

पुस्तक समीक्षा : फ़ैज़ - "चले चलो कि वह मंज़िल अभी नहीं आई"

समीक्षाकर्ता - प्रखर श्रीवास्तव
स्वतंत्र पत्रकार एवं 
लेखक


13 फ़रवरी 1911 को स्यालकोट पंजाब में जन्मे फ़ैज़ साहब से वरिष्ठ अधिवक्ता व ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के पदाधिकारी रहे सईद नकवी जी कि कोई निजी मुलाकात ना होने के बावजूद महज़ एक मुशायरे में सामने से सुनने और तमाम रात किताबों-कैसेटो के माध्यम से गुनने के बाद परिवर्तन प्रकाशन से किताब के रूप में निकली वैचारिक श्रंखला को पाठकों द्वारा काफी सराहा गया, यह फैज़ साहब की रचनाओं का संकलन ही नहीं बल्कि उनकी रचनाओं के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले वैचारिक उथल-पुथल की आज़ाद अभिव्यक्ति है |


अपने लेख की शुरुआत में नकवी साहब ने बड़ी ही खूबसूरती से शोषितों और वंचितों के वकील मुंशी प्रेमचंद और तरक्की पसंद लेखक फैज अहमद फैज का बारीक तुलनात्मक जिक्र किया हैजिसमें यह बताया गया है कि फैज ने अपनी शायरी में मुंशी प्रेमचंद्र की कही बात " हमें ऐसा अदब दरकार है जो लोगों को जगाए न कि सुलाये " इस बात का हमेशा अमल किया है |

पेज नंबर 5 पर मोहब्बत में मशगूल इश्क का जो सफरनामा शायरी के रूप में दर्ज हैवो भ्रमित प्रेमियों के लिए गाइड की तरह हैजिसमें शायर अपनी महबूबा को अपनी मजबूरी पर यकीन दिला रहा है उम्र के जिस पड़ाव पर और जिस तीव्र भाव से यह शायरी फैज़ की कलम से उपजी आगे चलकर वह वास्तव में उनके जीवन का अहम मोड़ साबित हुआ |

वही पेज 7 पर मौजूद गज़ल इस बात की दास्तां सुनाती है कि कैसे क्रांति का रास्ता इश्क की मंजिल से होकर गुज़रता है |

76 पन्ने की इस किताब में नकवी साहब ने फ़ैज़ की तमाम जिंदा शायरी को शुमार करने के साथ ही पाकिस्तान में रावलपिंडी साजिश केस में फैज़ साहब की गिरफ्तारीउनकी गिरफ्तारी पर जो अन्य बड़े लेखकों व संपादकों ने लिखा वो उनका जेल जीवन और उनके जेल जीवन के दौरान के मूड की शायरी की बारीक विवेचना की हैजिन शायरी में कहीं भी निराशा या विफलता का भाव नहीं दिखता...जिससे अवसाद व डिप्रेशन में जा रही गूगल से दुनिया घूम लेने वाली युवा पीढ़ी ये महसूस कर सकती है कि एक व्यक्ति जेल की चार दीवारों में अपनी अभीव्यक्तियों को कैसे पंख देता है |

इस किताब से हमें फैज़ की उन रचनाओं के बारे में भी जानने को मिलता हैजो कि उन्होंने फिलिस्तीनअमेरिका और बांग्लादेश जैसे देशों में हो रहे अत्याचारोंवहाँ की समस्याओं और वहाँ के समर्पित शहीद क्रांतिकारियों पर लिखी थी |

इस किताब में फैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरियां जितनी जरूरतमंद और चुनिंदा हैंउतने ही महत्वपूर्ण सईद नकवी के लेख भीकिताब के तीसरे लेख में बड़ी ही भावुकता के साथ उल्लेखित है कि "करोड़ों लोगों की तरह 14 अगस्त 1947 को फैज़ भी बगैर पूछे पाकिस्तानी हो गए लेकिन उनकी शायरी ने विभाजन कभी स्वीकार नहीं किया" इस किताब में फैज़ साहब की हिंदुस्तान की राजनीति और आर्थिक आज़ादी के संकल्प के विषय में भी चर्चा की गई है |

क्यों ना जहां का गम अपना ले " फैज़ साहब ने अपनी इस रचना को न सिर्फ रचना तक सीमित रखा बल्कि जीवन भर उसका अमल भी कियाआज के इस दौर में शायद ही कोई ऐसा हो जो अपने समाज का गम अपनाने की हिम्मत और हौसला रखता हो |

किताब की क़ीमत 60₹ हैकिताब की भूमिकापरिशिष्ट और प्रस्तावना में इजाफा किया जा सकता थाकिताब के कवर पेज के आधे हिस्से पर छपी नज़्म "हम देखेंगे" कवर पेज की रचनात्मकता के पैमाने पर उसे बोझिल बना रही हैकिताब के पन्नों की गुणवत्ता व बाइंडिंग बेहतरीन है |

फैज़ की शायरी अपने पाठकों को विशेष दृष्टिकोण से प्रभावित न करकेमौलिक विचार को बढ़ने की आजादी देती है जिस प्रक्रिया के मध्य इस किताब में मौजूद लेख कई बार बाधा बन सकते हैं तो वहीं नवाअंकुरो के लिए एक रोचक सेतु का काम भी कर सकते हैं परंतु इस प्रकार का प्रयोग पाठक पक्ष के हितों के लिए बेहद रचनात्मक इसलिए है क्योंकि प्रस्तुतकर्ता ने लेखक की लेखनी के साथ अपने अनुभवों में तमाम तथ्यपरक महत्वपूर्ण जानकारियों का इजाफा भी किया है|

सहमति-असहमति के भावों के बावजूद भी इस किताब को पढ़ने की यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुंचकर पाठक अपने वैचारिक भूख को शांत भी कर सकते हैं अथवा गमों को अपना कर नई भूख पैदा भी कर सकते हैं|



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सूर्य या चंद्र की खगोलीय घटना होने की संभावना

सुमित कुमार श्रीवास्तव  ( वैज्ञानिक अधिकारी) भारत वर्ष में उपच्छायी चंद्र ग्रहण दिनांक 5 मई 2023 को रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई दे...