Tuesday, April 7, 2020

एकांत


क्यों कहते बंधन में जकड़े


देखो प्रकृति हमारे संग है ।


लहराते पल्लव हरे हरे,


खुशबूदार हवाएं झूमें,


यह बसंत अपने ही रव  में


इसके संग ही बात करें ।


 


कैसे  यह उठकर बैठा है ,


ठण्ड शीत से आ उबरा है ।


कितना क्रियाशील सब कुछ है ,


जीव जंतु खग विहग देख लें ।


 


पक्षी कहीं कैद में दिखते


मन भी देखो कितना चंचल ।


सृजन करें , एकांत मिला है ,


देखें , नये विचार मिलेंगे ।


नयी दृष्टि कुछ आ चमकेगी


अंतर के उद्गार मिलेंगे ।


 


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