क्यों कहते बंधन में जकड़े
देखो प्रकृति हमारे संग है ।
लहराते पल्लव हरे हरे,
खुशबूदार हवाएं झूमें,
यह बसंत अपने ही रव में
इसके संग ही बात करें ।
कैसे यह उठकर बैठा है ,
ठण्ड शीत से आ उबरा है ।
कितना क्रियाशील सब कुछ है ,
जीव जंतु खग विहग देख लें ।
पक्षी कहीं कैद में दिखते
मन भी देखो कितना चंचल ।
सृजन करें , एकांत मिला है ,
देखें , नये विचार मिलेंगे ।
नयी दृष्टि कुछ आ चमकेगी
अंतर के उद्गार मिलेंगे ।
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