ए दिल भी कैसा पागल है? नदी सा बक्र चलता है |
सदा टेढ़ी लहर लेकर, शाश्वत सतत गतिमान रहता है |
बक्ष हुए हैं सखा हमारे, कहते सदा हैं करके इसारे।
तेरा जीवन है मेरे सहारे, मेरे बिना तुझे मृत्यु पुकारे।।
बिकल मन जब कभी होता, तब तुम्हारे पास आता हूँ |
सुन्दर प्रकृति के पास आते ही, सुख के क्षणों में डूब जाता हूँ।।
बक्ष हुए हैं प्राण हमारे, बक्षों संग हम झूम रहे हैं।
दिल का दुःखड़ा मन की लहरें, बागों में हम सब भूल रहे हैं।।
अचल प्रीति संग वृक्ष हमारे लब पर वृक्षों के गीत मन भरे।
प्रकृति सलोनी गीत सुहानें, पुष्प चले मन मीत कहानें |
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