Wednesday, May 20, 2020

दवाओं पर लूट


एक अनुमान के अनुसार इस देश में प्रतिवर्ष 1900 करोड़ रूपये के हेल्थ टॉनिक खाये जाते हैं। लगभग 50 करोड़ रूपये से भी अधिक के हेल्थ फूड्स बेचे जाते है जबकि सच तो यह है कि हमें इन हेल्थ टॉनिक्स व हेल्थ फूड्स की कतई जरूरत नही है हमारे देश की 40 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करती है। इस आबादी की आमदनी इतनी कम हैं कि वह संतलित भोजन भी नहीं कर पाती उसके लिए किसी डॉक्टर द्वारा हेल्थ टानिक लिखना सरासर अन्याय है।



आजकल इस बात का फैशन हो गया है कि जरूरत न होने पर भी दवाओं को खाया जाये अधिकतम 20 रूपये की लागत वाले इन तथाकथित शक्तिवर्धक टानिकों को 40 रूपये से 200 रूपये में बेचा जाता है। इन टानिकों को बेचने वाली कम्पनियों के मुनाफे का अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। भारतीय दवा उद्योग के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कब्जा है। इस समय भारतीय दवा बाजार में लगभग 60 हजार दवाओं में से 250 दवायें ही हमारे काम की हैं ये विदेशी कम्पनियाँ 100 प्रतिशत से 200 प्रतिशत का मुनाफा नहीं बल्कि 800 प्रतिशत का मुनाफा कमा रहीं हैं एक एक दवा बाजार में 40 से अधिक नामों से बिक रहीं हैं। कम्पनी का मुनाफा उतने ही गुना बढ़ता चला जा रहा है इन निरर्थक एवं नुकसानदेह दवाओं के जरिये करोडों रूपया विदेशों में जा रहा है। ये कम्पनियाँ हमारे देश उन दवाओं को बना बेच रही हैं जो कि उनके देश में जहर घोषित की जा चुकी हैंदुनिया के अन्य देशों में कई वर्ष पहले प्रतिबन्धित की गई दवायें हमारे देश में धड़ल्ले से बिक रही हैं इस मौत के व्यापार का एक नमूना दिसम्बर 1984 में भोपाल की वो क रात का होना इन विदेशी कम्पनियों की करतूत का एक हिस्सा ही हैअवैधानिक रूप से दवाओं के दाम बढ़ा कर जिन दस कम्पनियों ने 87 रूपये कमाये वो निम्न हैं -


1 जानवेथ 2. फाइजर 3. पार्क डेविस 4. सैंडोज 5. एबॉट लेबोरेटरी इथनोर 8. फुलफोर्ड 9. गिफान लेबोरटरी 10. निकोलस लेबोरेटरी


बहराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारतीय कानून का खुल्ला उल्लंघन करती है। भारत सरकार ने 15 जून 1988 को विशेष बजट नोटिफिकेशन 11018/1/88 जारी किया था। इस नोटिफिकेशन एक्ट के तहत इस्ट्रोजन-प्रोजेस्टोन और क्लोराम्फेनीकॉल-स्ट्रेप्टोमाइसिन के सहयोग र बनने वाली दवाओं का पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया। लेकिन आज भी दवायें धड़ल्ले से बिक रही हैं। यह खतरनाक दवाई ई पी फोर्ट, मैस्टोजन फोर्ड ओरसक्रोन फोर्ट तथा ओगलयूटीन आदि नामो से बाजार में बेची जा रही हैं|


इसी तरह 23 जुलाई 1983 में केंद्र सराकार ने गजट नोटिफिकेशन एक्ट 11014/2/83/ के तहत 27 प्रकार की मूल दवाओं का व्यापार प्रतिबंधित किया। लेकिन इनमें से कुछ दवायें आज भी बहराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा बेंची जा रही हैं। यह दवाएं सिनेलजेसिक, एक्रोमाइसीन, टेट्रामाईसीन, डेकाबोलिन, हिस्टाप्रेड, पैराड्रान, आदि नामों से बाजार में धड़ल्ले से बिक रही हैं।


26 दिसम्बर 1990 तथा 1991 को केन्द्र सरकार द्वारा जारी किये गये अध्यादेशों द्वारा 15 जेनरिक दवाओं को प्रतिबंधित किया गया लेकिन आज भी ये दवायें-ब्यूटा प्रोक्सीवान, काळटाइल, बाला जेसिक, वेगानिन, फोर्टजेसिक, मोण्टोरिप, डिकेरिस, जेफरोल, ल्यूपिहिस्ट, टिक्सीलिक्स, कोरेक्स, ट्रब्यूसाइन, डीस्ट्रोन आदि नामों से बाजार में बेची जाती हैं। इससे एक अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि कितना भयंकर और जानलेवा घोटाला दवा उद्योग में चल रहा है।


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