Tuesday, May 12, 2020

'कसक दिल की'


रजनी कारी सरके सारी, मुखड़ा खुल-खुल जावै।


प्यार ब्यथा का रोग कठिन है, कोई बाणी शब्द न आवै।


प्रेम ब्यथा है दर्द घना है, बाणी शब्द न आवै।


नेत्र हैं गीले गाल हैं भीगे, आसूं बहि-बहि जावै।


आह-कराह कसक दिल की, प्रिय कान्हा किसे सुनाऊँ?


गिर-गिर पड़ती प्रीति न घटती, जाके किसको दर्द बताऊँ।।


दिल में दर्द और आँखों की पीड़ा, बस मेरी सासें रोती रहती |


कह नहिं पाती सह नहिं पाती, रुक-रुक साँसें चलती।।


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