रजनी कारी सरके सारी, मुखड़ा खुल-खुल जावै।
प्यार ब्यथा का रोग कठिन है, कोई बाणी शब्द न आवै।
प्रेम ब्यथा है दर्द घना है, बाणी शब्द न आवै।
नेत्र हैं गीले गाल हैं भीगे, आसूं बहि-बहि जावै।
आह-कराह कसक दिल की, प्रिय कान्हा किसे सुनाऊँ?
गिर-गिर पड़ती प्रीति न घटती, जाके किसको दर्द बताऊँ।।
दिल में दर्द और आँखों की पीड़ा, बस मेरी सासें रोती रहती |
कह नहिं पाती सह नहिं पाती, रुक-रुक साँसें चलती।।
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