मानव सभ्यता के विकास के इतिहास में किसी भी नई खोज ने इतने मनोवेग, गहरे संदेह तीखी आलोचना व सनसनी को जन्म नही दिया जितना कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सुपर स्टेट भी कहा जाता हैजिन देशों की यह कम्पनियाँ होती है उन देशों की सरकारें भी इनसे भयभीत रहती हैं क्योंकि यह राज्य के ऊपर एक अधिराज्य के रूप में काम करती हैं। इन कम्पनियों की नीतियों से ही अब राज्य की नीतियाँ निर्धारित होती हैं। ये कम्पनियाँ विशाल राजनैतिक शक्ति वाले अधिकाधिक स्वाधीन केंद्र बनती जा रही हैं, जिन्होंने दुनियाँ के सभी देशो में राज्य के अन्दर राज्य जैसा बना लिया है जिसने स्वतंत्र शक्ति हासिल कर ली है |
इतिहास- सन 1600 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत मे व्यापार करने के लिए आयी हालाँकि इस कम्पनी की स्थापना एलिज़ाबेथ प्रथम के समय से ही हो चुकी थी लेकिन इस कम्पनी ने बहुराष्ट्रीय चरित्र सन् 1860 में ही ग्रहण किया मात्र 50,000 पाउंड से भारत में व्यापार शुरू करने वाली ईस्ट इंडिया कम्पनी सन 1770 तक आते आते भारत से 20,00,000 पाउंड के बराबर मुनाफा प्रति वर्ष कमाती थी सन् 1860 तक कुछ और विशालकाय कम्पनियाँ जो मूलतः ब्रिटेन की थी , दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी थी इन ब्रिटिश कम्पनियों के बारे में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जिन जिन देशों में ये कम्पनियाँ व्यापार करने के लिए गयी उन देशों में अंग्रेजी साम्राज्य का झंडा लहराया गयाब्रिटिश साम्राज्य की सीमाएं बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वहाँ की कम्पनियों ने निभायी थी |
सीमाएं बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वहाँ की कम्पनियों ने निभायी थीताकत- इन कम्पनियों की ताकत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली राज्य भी इन कम्पनियों की अवैध गतिविधियों पर रोक नही लगा सकता है। अमेरिका के फडरल रिसर्च बोर्ड को इस बात की जानकारी नही होती कि कितना यूरो डॉलर कहाँ और किसके पास है बहराष्ट्रीय कंपनियों के पास करीब 3100 अरब डॉलर लगभग (78,000 अरब रुपए) की तरल सम्पत्तियाँ बतायी जाती हैं जो विश्व की सभी सरकारों की पहंची सम्पत्तियों का लगभग तीन गुना हैं। फोर्बुन, जून 1990 के आधार पर यह देखा जा सकता है कि 1988 तक अमेरिकन कम्पनियों ने भारत में 4,807 अरब डालर से व्यापार शुरू किया और 36,526 अरब रुपए तक पहुंची जापानी कम्पनियों ने भारत में 2,843 अरब डालर से व्यापार शुरू किया और 51,174 अरब रुपए तक पहंची इसी तरह पश्चिमी जर्मनी की कम्पनियों ने भारत में 1,201 अरब डालरी भारत में व्यापार आरम्भ किया और 21,618 अरब रुपए का मुनाफा करने लगी ऐसे ही फ्रांस 947 अरब डालर, इटली 828 अरब डालर, ब्रिटेन 813 अरब डालर और कनाडा की कम्पनियों ने 482 अरब डालर से व्यापार आरम्भ किया और 17046 अरब 14904 अरब 14634 अरब 8676 अरब रुपए की व्यापार उन्हें भारत से मिलने लगा।
दुनिया की सबसे बड़ी विशालकाय 100 बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ चुनी गयी थीं जिनके बारे में फायूंन पत्रिका के 31 जुलाई 1989 के अंक में टिप्पणी छपी थी पूरे विश्व की अर्थ व्यवस्था पर चुनी गयी 100 बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा हैजितनी तरह परिसम्पत्ति इन सौ कंपनियों के पास है उसमे जरा सी भी हेर फेर कर देने पर पूरे विश्व की अर्थ व्यवस्था चरमरा सकती है। 31 जुलाई 1995 तक इन सौ कंपनियों में से 50 कंपनियाँ भारत में काम कर रही है। इन 50 कंपनियों में से प्रत्येक का वार्षिक कारोबार भारत सरकार के वार्षिक बजट से अधिक है।
वर्ष 1994 में इन कम्पनियों की विश्व भर में बिक्री तथा भारत में ये कंपनियाँ किस रूप में कार्य कर रही है इसका विवरण निम्न है |
सन 1914 तक यूरोप में जितनी कारें बनती थीं उसमे से एक तिहाई कार अकेले अमेरिका की फोर्ड कम्पनी बनाती थी, जबकि इस कम्पनी की स्थापना हेनरी फोर्ड ने 1903 में की थी। इन सन्दर्भ में एफ. ए. मैकन्जी द्वारा 1902 में लिखित पुस्तक "द अमेरिकन इन्वेस्टर्स' अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है उनके स्वंय के शब्दो में अमेरिका ने यूरोप को रौंद दिया है अपनी फौजों से नहीं बल्कि कम्पनियों द्वारा तैयार उत्पादों से। इन कम्पनियों के कप्तान आज युरोप के भाग्य विधाता बन बैठे हैंजिन्होंने मैड्रिक से लेकर सेंट पीटर बर्ग तक लोगों के दैनिक जीवन को अपने गिरफ्त में ले लिया है इन आततायी कम्पनियों के सामने अब कुछ भी सुरक्षित नही रह गया हैहमारे ड्राईवर अमेरिकी गाड़ियों में बैठने को बेताब हैं हमारे बच्चे अब अमेरिकी भोजन पर पल रहे हैं और हमारे बुजुर्ग भी अब अमेरिकी ताबूतो में दफनाएं जा रहे हैं । अमेरिकी कम्पनियों द्वारा बने सामानो की बाढ़ में यूरोप डूब गया है।
यह बात मुझे आज के समय में भारत के लिए कहना उचित लग रहा है अब राजनैतिक रूप से किसी देश को गलाम बनाना संभव नही है अतः देशो के आर्थिक रूप से इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के जरिये गुलाम बनाया जाता है। ये कम्पनियाँ आर्थिक साम्राज्यवादी शोषण का एक प्रमुख हथियार है।
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