मजदूरों की दर्द-ए-दास्तां
दर्द की कोई जाति नहीं होती.. आंसुओं का कोई मजहब नहीं होता.. और गम का कोई ठिकाना नहीं होता.. बस कोरोना के संकट में आंसुओं और दर्द को समझना हो तो बस तस्वीरें देख लीजिए.. कोरोना के बंद भारत में जब सबकुछ बंद हो गया .. घरों के चूल्हे ठंडे पड़ गए.. तो ये हजारों बेबस- लाचार लोग पैदल ही अपने घरों की ओर चल पड़े.. हमेशा ऐसा क्यों होता है ?.. कि हर दौर में हाकिम को बस ताकत चाहिए, सत्ता चाहिए, लोग नहीं.. काश हाकिम लोग इन तस्वीरों को एक बार देख लें तो क्या पता हुकूमत ले नफरत हो जाए और इंसानियत से मोहब्बत
130 करोड़ हिंदुस्तान की अबादी में इनकी तादाद 70 से 80 करोड़ है.. एक तिहाई हिंदुस्तान इन्हीं की वजह से आबाद है पर इसके वाबजूद हम और आप इन्हें किसान और मजदूर कहते हैं.. बस इतना ही जानते हैं कि हम सब इनके भाई बहन हैं.. आपके लिए ये भूखे- नंगे लोग हो सकते हैं.. लेकिन जिन घरों में आप रहते हैं.. ये घर यही बनाते हैं,, जिन सड़कों पर आप गाड़ियां दौड़ाते हैं वो ये ही बनाते हैं.. जो कपड़े आप पहनते हैं वो यही सीते हैं... जो सब्जी आप खाते हैं वो यही उगाते और बेचते हैं.. नहीं जानते हैं आप इन्हें आखिर इन्हें जानने की जरूरत भी क्या है.. हां मगर ये आपको बहुत अच्छे से पहचानते हैं.. क्योंकि जितने में आपका परिवार एक वक्त का पिज्जा खाता है उतने में तो इनका पूरा महीना निकल जाता है....
मजदूर हैं क्योंकि मजबूर हैं....
मेहनत- मजदूरी करके खाते हैं और जहां जगह मिल जाती है सो जाते हैं.. मगर शिकायत कभी नहीं करते.. न खुदा से न भगवान से न आप से और न सरकार से.. हिंदुस्तान की सियासत में किसान और मजदूर उस करी पत्ते जैसे हैं जो सियासत की हांडी में चढ़ते ही सबसे पहले उसमें डाले जाते हैं और चुनाव में जीत का पुलाव तैयार होने के बाद सबसे पहले निकालकर फेंक दिए जाते हैं.. इसी तरह अपने- अपने घरों में ऐसी की हवा खाने वालों के लिए लॉकडाउन उबाऊ हो सकता है.. मगर इन्हें तो इस लॉकडाउन ने बर्बाद ही कर दिया है.. मुमकिन हो कि आपको इनके बारे में जानने में दिलचस्पी न हो मगर फिर भी इनके बारे में जान लीजिए.. इन्हें भी पहचान लीजिए
हिंदुस्तान में ढाई हजार मौत कोरोना से हो चुकी हैं.. लेकिन 300 से ज्यादा लोगों की मौत कोरोना काल में तो हुई लेकिन उनका कोरोना से कोई लेना- देना नहीं है.. तीन सौ ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित के बिना मारे गए.. आखिर कौन हैं ये लोग.. ये मजदूर और किसान ही हैं.. जो बड़े- बड़े शहरों में काम के लिए शहरों की ओर पलायन कर गए थे.. रोज कमाने और खाने वालों का कम छिन गया तो रोटी अपने- अपने आप छिन गई.. परदेश में भूख से मरजाने से बेहतर अपने गांव घर लौटना मुनासिब समझा और इस जद्दो जेहद में कुछ ट्रेन से कटकर मर गए तो कुछ को गाड़ियों ने कुचल डाला.. कुछ को भूख ने मारा.. तो कुछ चलते- चलते थक कर मौत की नींद सो गए
हिंदुस्तान की ऐसी तस्वीरें आजादी के बाद किसी ने नहीं देखी थी..लेकिन मध्य प्रदेश में बैलगाड़ी में जुता हुआ मजदूर.. आगरा में सूटकेस से चिपका मासूम... बिहार के कटिहार में बिस्किट के पैसे के लिए जंग करते मजदूर.. कांधे पर अपने परिवार का बोझ उठाए चला जा रहा है.. देश की सड़कों और स्टेशनों पर मजबूरी के सिर्फ यही मंजर नहीं है.. तपते सूरज और जलती धरती के बीच जब सीमेंट मिक्सर को पुलिस ने इंदौर बॉर्डर पर रोका तो इसमें एक साथ भूख- प्यार, बेबसी और लाचारी मिक्सर से बाहर निकलना शुरू हो गई.. पुलिस वाले हैरान थे समझ नहीं आ रहा था कि इन्हें सजा दें या गिरफ्तार करें.. पुलिस ने दम घोंटू मिक्सर से तो बाहर निकाल लिया मगर उस भूख से कैसे बचाते.. लिहाजा ये पैदल ही चल पड़े.. एक गांव से दूसरे गांव.. एक शहर से दूसरे शहर.. एक राज्य से दूसरे राज्य..
सड़कों पर पसरा अजीब सा मंजर
लॉकडाउन के बीच सड़क पर अजीब मंजर पसरा है.. जिन रास्तों पर कभी मोटर- गाड़ियां दौड़ा करती थीं.. वहां भूख रेंगती नजर आ रही है.. कैसे घर पहुंचना है.. किस रास्ते से जाना है.. कब पहुंचेंगे.. कुछ नहीं पता.. ये बस चल रहे हैं.. चलते जा रहे हैं.. किसी ने कुछ खाने को दिया तो खा लिया.. किसी ने पानी दिया तो पी लिया.. जहां अंधेरा हुए वहीं सो गए.. पर कमबख्त रास्ता इतना लंबा है कि मंजिल मिल ही नहीं रही |
हर सफर की अपनी एक दास्तां है.. एड़ियां रगड़- रगड़ के अपने घर पहुंचने का फंसाना लॉकडाउन ने सिखा दिया.. पथरीले रास्तों ने न जाने कितनी ही ऐंडिया फाड़ दी.. छालों की तो खैर सुध ही नहीं.. पैरे में प्लास्टिक की बोतले बांध- बांध कर लोगों ने कदम आगे बढ़ाए.. लंबा सफर.. सिर पर गठरी.. पीठ पर बच्चा.. सामान की जगह बुजुर्ग मां- बाप और मीलों चलते जाना.. बिना थके.. बिना हिम्मत हारे.. बिना किसी सरकारी मदद के.. रोकना क विरोध हुआ तो सरकार से अड़के .. सच कहें तो इनसे ज्यादा आत्मनिर्भर देश में और कौन हिंदुस्तानी हो सकता है |
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