Saturday, May 9, 2020

मनुष्य और भ्रष्टाचार


"आओ तुम्हें अपना घर दिखा दू" भ्रष्टाचार ने मनुष्य से कहा -


"अच्छा दिखाओ ?"


भ्रष्टाचार ने पूछा-"मेरा निवास स्थल देखकर तुम्हें आश्चर्य तो न होगा ?"


"जब तुम्हारा घर देखा नही तो मुझे क्यों आश्चर्य होगा भला ?''


"क्योकि मेरा निवास है ही इतना सुन्दर।"


"इससे मुझे क्या ?" मनुष्य ने कहा- "क्या तुम नही जानते कि, अगर कोई मुझे तुम्हारे साथ देख लेगा तो; मेरा सारा अस्तित्व ही संदेह के घेरे में आ जायेगा।"


भ्रष्टाचार तनिक मुस्कुरा कर बोला-"क्या तुम ऐसा वास्तव में समझते हो ?"


"हाँ; क्योकिं समाज में कोई भी तुम्हारी प्रंशसा नही करता है।"


"पर तुम मेरे बिना कैसे रह सकते हो ?" भ्रष्टाचार बोला-"तुम्हारी प्रत्येक समस्या का समाधान तो मुझे ही करना पड़ता है।"


मनुष्य के माथे पर बल पड़ गया और वो बोला-"परन्तु मैं ऐसा नही समझाता ?"


तुम्हारे सारे ऐशो आराम मेरी ही मेहरबानी की देन है। यदि मैं न होता तो तुम्हारी कम अंको वाली मार्कशीट मे नम्बर नही बढ़ पाते, तब तुम्हें अच्छी नौकरी न मिलती, बच्चों को स्कूलों मे प्रवेश नही मिलता, मकान के लिए सीमेन्ट न मिलती, बढ़े हुये बिजली-पानी के बिल कम न होते। कुछ रूक कर; "और तो और, छोटे भाई की जायदाद पर तुम्हारा कब्जा न होता और इसप्रकार तुम्हारा सारा जीवन दुख-दर्द का फोड़ा बन जाता | "


मनुष्य आश्चर्य चकित होकर बोला-"पर; मैंने तुम्हें कभी देखा तो नही!'


 -भ्रष्टाचार बोला-"शायद मुझे कभी देख भी न सको।'


"क्यूँ भला ?"


तभी भ्रष्टाचार ने अपनी उंगली मनुष्य के हृदय से सटा दी। और बोला-"जी, हाँ, यही तो है मेरा सुन्दर सा निवास स्थान।"


मनुष्य निरूत्तर सा उसे देखता रह गया


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