Sunday, May 24, 2020

पृथ्वीराज का 'दिल्ली सूत्र'


"हम बेशक आसमान में उड़ रहे हो पर हमारा जमीन से नाता नहीं टूटना चाहिए। पर अगर हम अर्थशास्त्र और राजनीति की जरूरत से ज्यादा पढ़ाई करते हैं तो जमीन से हमारा नाता टूटने लग जाता है। हमारी आत्मा प्यासी होकर तन्हा हो जाती हैहमारे राजनीतिक मित्रों को उसी प्यासी आत्मा की स्थिति से रक्षित रखने और बचाने की जरूरत है और इस उद्देश्य के लिए शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, कवियों, लेखकों और कलाकारों के रूप में नामित सदस्य यहाँ (राज्यसभा में) उपस्थित हैं' 



२. यह राज्यसभा में फिल्मों और थियेटर के दिग्गज पृथ्वीराज कपूर के भाषण का एक अंश हैं। उन्होंने इस बेहतरीन व्याख्या के जरिये राज्यसभा में कलाकार के रूप में नामित सदस्यों की भूमिका को स्पष्ट किया। यह साबित हुआ. कि संसद के उच्च सदन में उनका नामांकन कितना उचित था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पृथ्वीराज के बड़े प्रशंसक थे। पृथ्वीराज को वे दो बार, वर्ष 1952 में दो साल के लिए और फिर वर्ष 1954 में पूर्ण काल के लिए राज्यसभा का सदस्य नामित किया गया। पुस्तक थिएटर के सरताज पृथ्वीराज" (प्रकाशक: राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) में योगराज लिखते हैं कि पृथ्वीराज राज्यसभा में अपने नामांकन को लेकर दुविधा में थे। बकौलपृथ्वीराज, "थिएटर की भलाई और राज्यसभा की व्यस्तताएं, पर क्या किया जाए! मुझे इन परिस्थितियों का मुकाबला तो करना होगा। थिएटर को भी जिंदा रखना है और सरकार के इस सम्मान को भी निभाना है। दूसरा कोई चारा नहीं है चलो थिएटर की सलामती के लिए और बेहतर लड़ाई लड़नी होगी।" .



"राज्य सभा के नामांकित सदस्य पुस्तिका" (प्रकाशकराज्यसभा सचिवालय) के अनुसार, पृथ्वीराज कपूर ने सदन के पटल पर नामजद सदस्यों (जिसका संदर्भ मैथिलीशरण गुप्त का था) के अपने आकाओं के विचारों को व्यक्त करने के आरोप का खंडन करते हुए कहा, "जब यहां अंग्रेजों का राज था और जनता पर दमिश्क * की तलवार लटक रही थी तब मैथिलीशरण गुप्त जैसे क्रांतिकारी थे, जिनमें भारत भारती लिखने का साहस था। - ऐसे में, उस समय हिम्मत करने वाले निश्चित रूप से आज अपने मालिकों के समक्ष नहीं नत मस्तक होंगेवे (नामजद सदस्य) तर्क और प्रेम के सामने झुकेंगे और न कि किसी और के सामने। पृथ्वीराज कपूर ने देश की सांस्कृतिक एकता के अनिवार्य तत्व को रेखांकित करते हए 15 जुलाई 1952 को राज्यसभा में एक राष्ट्रीय थिएटर के गठन का सुझाव दिया था। जिसके माध्यम से विभिन्न संप्रदायों और भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने वाले व्यक्तियों को एक साथ लाने और एक समान मंच साझा करने तथा जा सकें। "उचित व्यवहार सीखने के अवसर प्रदान किए जा सकें।



वर्ष 1954 में संगीत नाटक अकादमी के "रत्न सदस्यता सम्मान' से सम्मानित होने के बावजूद उन्होंने पृथ्वी थिएटर के लिए किसी भी तरह की सरकारी सहायता लेने से इंकार कर दिया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें कई सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडलों में विदेश भेजा। पृथ्वीराज कपूर, और बलराज साहनी वर्ष 1956 में चीन की यात्रा पर गए एक भारतीय सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। .रंगमंच का कलाकार होने और फर्श से अर्श तक पहुँचने के कारण वे रंगमंच की चनौतियों और कलाकारों को रोजमर्रा से परिचित के जीवन में होने समस्याओं से अच्छी तरह से परिचित थे |



उन्होंने राज्यसभा के थे। उन्होंने राज्यसभा के । सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मंचीय. कलाकारों के कामकाज की स्थिति को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की। इसी -लाकारों के लिए रेल किराए में का नतीजा था कि वे मंचीय 75 प्रतिशत की रियायत प्राप्त करने में सफल रहे उनकी MUCHALपोती और पृथ्वी थिएटर CHAND को दोबारा सँभालने वाली संजना कपर के अनसार, "मेरे दादा के कारण ही आज हम 25 प्रतिशत रेल किराए में पुरे देश भर में यात्रा करने में सक्षम हैं अन्यथा हम अपना अस्तित्व ही नहीं बचा पाते।" इतना ही नहीं, पथ्वीराज ने देश के अनेक शहरों में रवींद्र नाट्य मंदिरों की भी स्थापना की।



थिएटर में रूझान के कारण कानून की अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर पेशावर से मुंबई अपनी किस्मत आजमाने पहुंचे और पृथ्वीराज इंपीरियल फिल्म कंपनी से जड़े। वर्ष 1931 में प्रदर्शित पहली भारतीय बोलती फिल्म 'आलमआरा' में पृथ्वीराज ने बतौर सहायक अभिनेता काम करते हुए चौबीस वर्ष की आय में ही अलग-अलग आठ दाढ़ियां लगाकर जवानी से बढापे तक की भूमिका निभाई। फिर राज रानी (1933), सीता (1934). मंजिल (1936). प्रेसिडेंट, विद्यापति (1937). पागल (1940) के बाद पृथ्वीराज फिल्म सिकंदर (1941) की सफलता के बाद कामयाबी के शिखर पर पहंच . गए। उनकी अंतिम फिल्मों में राज कपूर की 'आवारा' (1951), 'कल आज और कल', जिसमें कपूर परिवार की(195 तीन पीढियों ने अभिनय किया था और ख्वाजा अहेमदन अब्बास की 'आसमान महल' थी। उन्होंने कुल नौ मूक और 43 बोलती फिल्मों में काम किया।


हिंदी सिनेमा के सितारे पृथ्वीराज कपूर ने कनॉट प्लेसः के सिनेमाघरों में कई नाटकों का प्रदर्शन किया। 


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