एक जमाना था जब गरीबी हटाओ राजनीति करने का मुख्य शस्त्र हुआ करता था;सत्ताधारी दलों के सरकारों द्वारा समय-समय पर गरीबी दूर करने के लिए--गरीबी रेखा के नीचे के जीवन-यापन कर रहे लोगों के लिए-मुफ्त राशन की व्यवस्था आदि उपाय किये गये और अभी भी किये जा रहे हैं ।
मानव आवश्यकता मात्र रोटी,कपड़ा और मकान तक सीमित नही रह गयी है;और भी हैं जिनकी बहुत अधिक व्याख्या की आवश्यकता नही है; हाँ,नौकरी मिल जाने से बहुत कुछ पूरा हो जाता है,किन्तु नौकरी कितनी है और मिलने के पैमाने कितने है,सभी लोग कमोबेश परिचित हैं ।
मानव तो विकल्प तलाशता है;उसके पास उसका जो कुछ भी है उसी के द्वारा मजदूरी को सशक्त विकल्प बनाता है;उसमें उसे नौकरी सदृश पैमाने की जरूरत नही पड़ती है;इस अकुशल व कुशल मजदूर की कितनी विशाल संख्या है,कोरोना काल में पलायन के फलस्वरूप पता चल रहा है ।
अब राजनीति के मूल्य भी बदलने लगेगे और कोरोना युग मे बदलने लगे हैं;यह स्मरण करने योग्य है कि मजदूर की कोई जाति और पंथ नही नही होती है और न ही उसका कोई क्षेत्र विशेष होता है;कोरोना काल की राजनीति ने उसे कदाचित क्षेत्र बिशेष का बना दिया है;क्या इस वर्ग ने सुरक्षा के अलावा कुछ मांगा है?
Friday, May 22, 2020
राजनीति के मूल में मजदूर
Featured Post
सूर्य या चंद्र की खगोलीय घटना होने की संभावना
सुमित कुमार श्रीवास्तव ( वैज्ञानिक अधिकारी) भारत वर्ष में उपच्छायी चंद्र ग्रहण दिनांक 5 मई 2023 को रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई दे...

-
एक जमाने में कहा जाता था कि जिसको ना दे मौला उसको दे सुराजुद्दौला, सुराजुद्दौला अपने समय के दानवीर राजा थे उनके शासनकाल के बाद... लखनऊ में...
-
सुमित कुमार श्रीवास्तव ( वैज्ञानिक अधिकारी) भारत वर्ष में उपच्छायी चंद्र ग्रहण दिनांक 5 मई 2023 को रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई दे...
-
अम्बेश तिवारी कानपुर में जन्मे गीतकार, कवि , लेखक और रंगकर्मी अम्बेश तिवारी एक निजी संस्थान में एकाउंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। अम्बेश ...
No comments:
Post a Comment