Monday, May 4, 2020

शब्द ब्रह्म और शब्द- विनाश


शब्द ब्रह्म और शब्द- विनाश,
आह्लादित मन तब   पुष्प- पर्ण;
तनिक चूक- असंयत या सहास,
फुफकार राग ग्रस्त चेहरे विवर्ण.



            कभी कोरोना का क्रंदन क्रूर,
            विगलित प्रेम का,कभी सुरूर;
            अचेत मन अक्षम्य अपराध,
             मधुर बोल-बन जाते ब्याध.



गत प्रेम मन के मौन-बवंडर,
ध्वनि -तीव्र पर कर्ण पत्थर; 
मोह-मान नद में तैरता नश्वर,
त्वरित भूलता नर जरा-जर्जर.



          ख्याति जय का मद-मत शोर,
         नर ढूढता फिरता कारूण्य कोर;
          श्रव्य-यंत्रों की -स्नेहिल पुकार,
           मद-मत्त कर्ण सुन- देते नकार.



प्रिय बंधु-जन  सर्व प्रेम धाम,
वपु-कारूण्य युक्त सुंदर नाम;
करूणासागर हे  करुणागार, 
डगमग नाव  लगाइये पार .


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