जायके का जहर- कब्ज, अल्सर, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, आँखों के रोग, बहरापन, डायबिटिज़, कैंसर जैसे रोग बढ़ रहें हैंहर जगह उपलब्ध होने वाले आकर्षक सुविधाजनक फास्टफूड को लोगों ने जिस तेजी से अपनाया है उतनी ही रफ्तार से लाइलाज़ रोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही हैदरअसल ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की आड़ में बाजार में कब्जा करने के लिये खाद्य उत्पादों को घटिया तरीके से बेचना शुरू किया हैफास्टफूड हमारे स्वास्थ्य के दुश्मन हैआमतौर पर डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ जो बाजार में लंबे समय तक टिके रहते हैं, हानिकारक होते हैं। बिस्कुट, पेस्ट्री, नमकीन, अचार, मिठाइयाँ इत्यादि जिन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए रसायनों का इस्तेमाल होता है जो कि शरीर के नाजुक अंगों को क्षति पहुँचाते हैं। महंगा फास्टफूड खरीदकर अपनी सेहत बिगाड़ने वाले लोग आधुनिकता का दम्भ भरते नजर आते हैं। मगर धीरे-धीरे इनका दुष्प्रभाव शरू होता है। जब चिकित्सकों के भरोसे वे अपनी जीवन की गाड़ी घसीटने को मजबूर हो जाते हैं। रसायनों की रंगत रोगों का संगत है। नूडल्स खाने में स्वादिष्ट इसलिये लगता है क्योंकि इसमे मिलाये जान वाले रंग स्वादग्राही कोशिकाओं को भ्रमित कर देता है |
इन स्वाद रहित रसायन से नूडल्स अधिक समय तक तरोताजा बना रहता है। लम्बे समय तक नूडल्स के सेवन से स्वादग्राही कोशिकायें अपनी प्राकृतिक शक्ति शाकाहारियों को क शक्ति खो देती हैं, परिणामतः भूख न लगने की बीमारी हो जाती हैहारियों को इससे अवश्य बचना चाहिए क्योंकि ये जैविक चर्बी से बनता हैमें स्वाद को बढ़ाने वाले सैकरीन, साइक्लोमेट एमेसेल्फ तीनों शब्द कैंसर " माने गये हैं। खाद्य पदार्थों में ऐसे खतरनाक रसायन का प्रयोग इसलिये जाता है कि वो तरो ताजा, सुगंधित व आकर्षक बनाने का काम कर सके। मोनोसोडियम ग्लूटामेट एक सफेद रंग का पदार्थ है जो पानी में आसानी से घुल जाता है। 1969 में वाशिंगटन विश्व विद्यालय के डॉक्टर जे.ओ.एल ने इस पर अनसंधान किया था। उन्होंने अपने प्रयोग के नतीजे में पाया था कि जब इस रसायन को इंजेक्शन द्वारा चूहों को दिया गया तो उसके मष्तिष्क की कोशिकायें मरने लगी। उनमे कैंसर के लक्षण पैदा होने लग गए। गिनीपिग व बन्दरों पर इस तरह के प्रयोगों ने भी इसके कैंसरकारी होने की पुष्टि की थीकुल मिलाकर ये आहार भारतीय मौसम परिस्थिति एंव संस्कृति के भी विपरीत हैहमारे यहाँ उष्ण, आद्र मौसम रहता है। इस मौसम में प्राकृतिक सुपाच्य और स्वाभाविक स्वाद वाली देशज वस्तुयें ही आहार की जानी चाहिए लेकिन मैं देख रहा हूँ कि एक तरफ कुपोषण का शिकार बच्चे हैं तो दूसरी तरफ फास्ट फूड से बीमार बच्चे हैंअतः भविष्य में देश का नागरिक कैसा होगा? विचार करना मुश्किल हैं।
कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ऐसे खाद्य पदार्थ बेंच रही हैं जो कि मांसाहार है लेकिन कम्पनियो द्वारा बताया जाता है कि पैकेट पर दिया ग्रीनमार्क [] यह बताता है कि यह वस्तु पूर्णतः शाकाहारी है। हमारे शोधकर्ताओं ने जब फूड सेफ्टी स्टैडर्ड अथॉरिटी आफॅ इंण्डिया कोटला रोड न्यू दिल्ली से सम्पर्क किया तो जानकारी मिलती है कि वह सिर्फ कम्पनी को लाइसेंस देने का काम करती है और ग्रीनमार्क/ रेडमार्क के निर्माता स्वयं कम्पनी ही होती हैजोधपुर के Chordia Health zone Department के निर्देशक Dr. C. M. Chordia ने अपने रिसर्च रिपोर्ट में जो जानकारी दी है वह अचम्भित कर देने वाली हैं परन्त सत्य भी है। दी गयी रिसर्च में प्रोडक्ट के सामने जो कोड दिये हैं उनको इंटरनेट पर डालने इसकी पुष्टि हो जाती है।
पेप्सी कोका कोला
पेप्सी दिल्ली की वैज्ञानिक सरंथा सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की एक की रिपोर्ट में बताया गया कि पेप्सी एव कोका कोला के सभी ठंडे पेयों में गंत जहरीले एंव खतरनाक कीटनाशक रसायन मिले हुए हैं। कोका कोला के मनों की जाँच की गई इसमे पाया गया कि इन सभी नमूनों में बहुत अधिक का में रसायनिक कीटनाशक जैसे क्लोरोपैरिफास, मैलाथियान डी.डी.टी, डेन आदि मिले हुए हैं। ये सभी कीटनाशक शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं |
होते सरकार की ओर से जवाब देते हुए स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्री सषमा स्वराज्य ने लोकसभा में कहा कि जल्दी ही सरकार इस विषय पर जाँच कराएगी। इसी तरह 21 अगस्त 2003 को राज्यसभा में भी बहस हुई। वहाँ भी मंत्री महोदय ने इसी तरह का आश्वासन दिया। अंत मे लोकसभा अध्यक्ष के निर्देश पर संयुक्त संसदीय समिति गठन करने का फैसला किया गया। इस तरह 22 अगस्त 2003 को सरकार द्वारा पेप्सी कोका कोला की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की अधिसूचना जारी की गई। इस संसदीय समिति में 10 सांसद लोकसभा से एंव 5 सांसद राज्यसभा से लिए गए। अध्यक्ष शरद पवार थे समिति में लोकसभा से अंनत कुमार, डॉ सुधा यादव, रमेश चेन्नीथला, अवतार सिंह भड़ाना, के येरन नायडू, ई. अहमद, रंजीत कुमार पांजा, अखिलेश यादव और अनिल बसु को लिया गया। इसी तरह समिति में राज्यसभा से एस. एस.अहलूवालिया, पृथ्वीराज चौहान, संजय निरूपम, प्रेमचन्द्र गुप्ता , प्रशांत चटर्जी को लिया गया। इस समिति के लिए डॉ एस.के.खन्ना, डॉ एन.पी. अग्रिहोत्री , डॉ जी त्यागराजन को विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया गया। 4 फरवरी 2004 को इस रिपोर्ट को बनाने में संयुक्त संसदीय समिति के सामने कई मंत्रालय पेश हुए। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट द्वारा मई 2003 में पेप्सी एंव कोका कोला के सभी ब्रांडों की जांच की गई। जिसमे पाया गया कि यूरोपीय मानको की तुलना में भारतीय पेप्सी एंव कोक में 21 गुना अधिक लिंडेन हानिकारक कीटनाशक 42 गुना अधिक डी.डी.टी 72 गुना अधिक क्लोरोपायरीफास, 196 गुना अधिक मैलाथियान मौजूद है। सी. एस.ई. संस्था की प्रयोगशाला में अमेरिका से लाए हए पेप्सी कोकाकोला के सभी ब्रांडो की भी जांच की गई लेकिन इन अमेरिकी नमूनों में कुछ भी रसायनिक कीटनाशक नही पाए गए।
- सी.एस.ई. की रिपोर्ट के बाद भारत सरकारी प्रयोगाशालाओं को भी पेप्सी एंव कोका कोला की जांच के लिए कहा। मैसूर की प्रसिद्ध प्रयोगाशाला सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजी रिसर्च इंस्टीटयूट और कलकत्ता की प्रयोगाशाला सेंट्रल फूड लेबोरेटरी ने भी पेप्सी कोला एंव कोका कोला के नमूनो की जांच कीएक रिपोर्ट में भी बताया गया कि पेप्सी कोला एंव कोका कोला के नमूनो में क्लोरोपायरीफास, मैलाथियान डी.डी.टी एंव लिंडेन जैसे खतरनाक कीटनाशक रसायन मौजूद हैंइसी तरह कलकत्ता की प्रयोगाशाला सेंट्रल फूड लेबोरेटरी द्वारा की गई जांच में भी यह पाया गया कि पेप्सी एंव कोका कोला में रसायनिक कीटनाशक उपस्थित हैं।
दिल्ली के केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रयोगशाला में भी पेप्सी एंव कोका कोला के नमूनों की जांच की गई और पाया गया कि कोकाकोला एंव पेप्सी में रासायनिक कीटनाशक मैलाथियान, डी.डी.टी. लिंडेन तथा क्लोरोपायरी फास मौजूद हैंइसी तरह केरल सरकार ने भी बंगलौर के श्रीराम औद्योगिक शोध केन्द्र में पेप्सी कोक की जांच करायी उसमे भी पाया गया कि पेप्सी कोक में रसायनिक कीटनाशक हैं। उड़ीसा सरकार ने जांच कराई और उसमें भी कीटनाशक पेप्सी कोक में पाए गए। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार सन 2001 में 654 करोड़ बोतलें ठंडे पेयों की बिकीभारत में प्रति व्यक्ति खपत के अनुसार ठंडे पेय का उपयोग दुनिया में सबसे कम है। भारत में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 6 बोतलों की खपत होती है। थाईलैंड में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 80 बोतलों की खपत होती है। अमरीका में ठंडे पेयों की 800 बोतलों की खपत प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष होती हैभारत में दिल्ली शहर में सबसे अधिक ठंडे पेयों की बिक्री होती है। संयुक्त संसदीय समिति के सामने प्रस्तुत किये गए दस्तावेज के आधार पर सॉफ्ट ड्रिंक में मिलाए जाने वाले रसायनिक पदार्थों का विवरण इस प्रकार है। 86% से 92% तक पानी सॉफ्ट ड्रिंक्स में होता है जिससे मीठा पन लाने के लिए एस्परटेम नाम का रसायन मिलाया जाता है। यह सैक्रीन से 200 गुना अधिक मीठा होता है। यह ड्रिंक बनाने में कैफीन नाम का रसायनिक पदार्थ भी मिलाया जाता है |
इस कैफीन के कारण किसी भी व्यक्ति को बार बार ठंडा पेय पीने की लत लग जाती है। सॉफ्ट ड्रिंक में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस भी मिलाई जाती है जिसका मुख्य कारण ड्रिंक में कीटाणुओं को पनपने से रोकना होता है और सॉफ्ट ड्रिंक में फास्फोरिस ऐसिड, सिट्रिक एसिड, मौलिक एसिड आदि जैसे रसायन भी मिलाए जाते हैं और इसके अतिरिक्त रंग पैदा करने के लिए कैरामेल मिलाया जाता है। भारत में ठंडे पेयों को बनाने एवं बेचने के लिए एक कानून है जिसे आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के रूप में जाना जाता है।
जिसे आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के रूप में जाना जाता है। इस अधिनियम के आधार पर एफ.पी.ओ. यानी फूट प्रोडक्ट आर्डर 1955 में जारी किया गया था जिसके आधार पर कंपनियों को ठंडे पेय बनाने और बेचने का लाइसेंस दिया जाता है। लेकिन इस कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके आधार पर ठंडे पेयों में प्रयोग होने वाले पानी की गुणवत्ता का कोई मानक तय किया जा सके । भारत की आजादी के 71 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने पीने के पानी की उच्च गणवत्ता का कोई मानक तय ही नहीं किया संसदीय समिति के अनुसार भारत में कोका कोला के 52 कारखाने हैं जिनमें से 27 कारखाने कोका कोला कम्पनी के हैं तथा बाकी 25 कारखाने अन्य दूसरी भारतीय कम्पनियों के हैं लेकिन इनमें भी उत्पादन पूरा कोका कोला कम्पनी के लिए ही होता है। इसी तरह पेप्सी कोका कोला कम्पनी के भारत में 38 कारखाने हैं जिनमें से 17 कारखाने कम्पनी के स्वयं के है एंव 21 कारखाने अन्य दूसरी भारतीय कम्पनियों के हैं जिनमें पेप्सी कोका के लिए उत्पादन होता है। राजीव गांधी ने स्वयं संडे पत्रिका को दिए एक साक्षात्कर में स्वीकार किया कि पेप्सी प्रोजेक्ट बहुत बुरा है इसी साक्षात्कर में राजीव गांधी ने कहा कि "जब यह पेप्सी प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया था, तब ठीक था'' इसी तरह 13 सितम्बर 1986 में इंद्रकुमार गुजराल (जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने) ने एक खुला पत्र प्रधानमंत्री के नाम लिखा, जो टाइम्स ऑफ इण्डिया समाचार पत्र में भी छपा। इस पत्र में लिखा गया श्रीमान आज कल पेप्सी कोला कम्पनी के समर्थन एवं विरोध में बहुत सारे तर्क वितर्क पढ़ने एंव सुनने को मिल रहे हैं।
इन सभी को जानने से एक निष्कर्ष तो जरूर निकलता है कि पेप्सी प्रोजेक्ट के पीछे कुछ निहित स्वार्थ भी काम कर रहे है पेप्सी के समर्थन में सबसे बड़ा तर्क यह है कि भारत के खाद्य प्रसंस्करण एवं हार्टिकल्चर के लिए बहुत उपयोगी होगी। लेकिन मेरा मानना यह है कि भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास करने के लिए किसी विदेशी कम्पनी की कोई जरूरत नही है पेप्सी कोला कम्पनी की ओर से जो पैकेज भारत सरकार के सामने पेश किया गया है उसी तरह के प्रस्ताव दक्षिणी अमरीकी देशों की सरकारों के सामने भी इन अमेरिकी कम्पनियों द्वारा पेश किये गए थे। लेकिन सभी दक्षिणी देश अमरीकी देश उन प्रस्तावों को स्वीकार करके बर्बाद हो गए इन विदेशी कम्पनियों ने दक्षिण अमेरिका के किसानों को विदेशी कम्पनी के रहमोकरम पर निर्भर हो जाएं यह बिल्कुल अच्छा नही है यह एक गलत शुरूआत है जिससे भविष्य मे अन्य विदेशी कम्पनियों को भी भारत में आने का मौका मिल जाएगा जो कि देश के लिए खतरनाक साबित होगापेप्सी कोला कम्पनी के विरोध में जब इस तरह के खुले पत्र प्रधानमंत्री को लिखे जाने लगे, तो फिर इस कम्पनी ने एक नया तरीका अपनाया। इस कम्पनी के कर्मचारियों ने पंजाब के कुछ गाँव जाकर किसानों को बहला फुसलाकर अपने समर्थन में एक हस्ताक्षर अभियान चलाया।
लगभग इस तरह से 20,000 हस्ताक्षर भारत सरकार को सौपें गए हैं। भारत सरकार के सामने यह पेश किया गया कि पेप्सी कोला को भारत में किसान भी चाहते हैं। परोक्ष रूप से भारत सरकार को यह धमकी दी गई कि यदि सरकार ने पेप्सी कोला प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी तो पंजाब में किसानों का वोट काग्रेस पार्टी को नही मिलेगा। इस हस्ताक्षर अभियान में पेप्सी कोला कम्पनी के अमिताभ पाण्डे एंव गोकुल पटनायक नाम के बड़े अधिकारी शामिल थे। पेप्सी कोला कम्पनी के प्रोजेक्ट को भारत में मंजूरी मिलने में लगभग 2 साल लगे। इन परे 2 सालों तक अमरीकी सरकार का दबाव भारत सरकार पर पड़ता रहा भारत सरकार को दबाव भरे पत्र और सन्देश आते रहे। अमरीकी सरकार की ओर से भारत सरकार को सुपर-301 और स्पेशल-301 कानूनों प्रावधानों के आधार पर कार्यवाही करने की धमकी दी जाती रही। पेप्सी कोला कम्पनी का तत्कालीन मुखिया डोनाल्ड केंडल भारत सरकार और अमरीकी सरकार के बीच में बिचौलिए की भूमिका निभाता रहा।
भारत सरकार ने पेप्सी कोला परियोजना को जिन शर्तों के आधार पर मंजूरी दी वे शर्ते इस प्रकार थी
इन सभी शर्तों के आधार पर ही पेप्सी कोला परियोजना को स्वीकार किया गयालेकिन कई वर्षों के बाद भी आज तक पेप्सी कम्पनी ने एक भी शर्त पूरी नहीं की है।
जंक फूड
जंक फूड जंक फूड वो फूड है जिनमें की पोषक तत्व कम हों और बाकी सब अधिक। इनमे अधिकांशतः सोडियम की मात्रा अधिक पाई जाती हैं। जंक फट में विटामिन, मिनरल और प्रोटीन नहीं होते जबकि साल्ट, शुगर फैटस अधिक माग में होते हैं। एन० आर० ए० आई यानी नैशनल रेस्टोरेट एसोशियशन आफ इण्डिया की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में फास्ट फूड उद्योग का कारेबार 6750 से 8000 करोड़ रूपए का हैंजिसमें कि 35 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक की वृद्धि प्रतिवर्ष होती जा रही है। अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर के एफ सी मैकडोनाल्ड, डोमिनोज, सब वे आदि इस बाजार के बड़े खिलाड़ी हैं जो कि आसानी से सब जगह उपलब्ध हो जाते हैं। और जिनका की बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार होता है। इन कम्पनियों का विशेष लक्ष्य बच्चों को लुभाने का होता है जिसके लिए यह आर्कषक पैकिंग से लेकर पदार्थ में हानिकारक रंगों का मिश्रण करने से भी नहीं कतराते । आज यह प्रोडक्ट्स ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच गए हैं और देश के अधिकांश युवा फल और सब्जी की जगह फास्ट फूड को अधिक महत्व देने लगे यह ही कारण है कि आज भारत मे नई-नई प्रकार की बीमारियां भी जन्म ले रही हैं यह खाद्य पदार्थ लोकप्रिय इसलिए भी हैं क्योंकि यह स्वादिष्ट हैं। आज से 65 वर्ष पूर्व कुछ व्यक्तियों के संयुक्त्त समह द्वारा किए गए शोध और द जर्नल ऑफ क्लीनिकल इन्वेस्टिगेशन की 2009 की एक रिपोर्ट के अनुसार फैटी एसिड से उत्पन्न होने वाला फैट मानव मस्तिष्क को प्रभावित है। बहत अधिक जंक फड ब्रेन की केमेस्ट्री को डिस्टर्ब करता है। हाई इफ्यूरो टोस कोर्न सिरप, मोनोसोडियम ग्लूटामेट, हाइड्रोजन तेल, रिफाइड सॉल्ट और जंक फूड में मौजूद में कई केमिकल बेस्ड प्रिजरवेटिव्स मानव मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं डब्ल्यू एच ओ ने 21 जनवरी 2011 में विद्यालयों के स्वस्थ वातावरण और कम उम्र के बच्चों में बढ़ते मोटापे को ध्यान में रखते हुए सलाह जारी करते हए कहा था कि सभी विद्यालयों और प्लेग्राउंड आदि में उपलब्ध जंक फूड के साथ ही उनके प्रचार पर भी पाबन्दी लगा दी जाए |
वैसे ब्रिटेन नामक देश जहाँ मोटापा एक बड़ी समस्या है जहाँ की लगभग 26 प्रतिशत जनता मोटापे का शिकार है उस देश ने वर्ष 2005 में देश के सभी विद्यालयों में जंक फूड पर पाबन्दी लगा दी है तथा अगस्त 2008 से इस देश में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए आने वाली सभी टेलीविजन कार्यक्रमों मे जंक फूड के प्रचार पर भी रोक लगा दी गई। वहीं मार्च 2012 म स्कॉटलैंड नामक देश में रात्रि 9 बजे से पहले जंक फूड के टेलीविजन प्रचार प्रसार पर पाबन्दी लगाने का प्रस्ताव रखा गया। मैक्सिको ने मई 2010 म पब्लिक प्राइवेट या फिर विद्यालयों सभी में जंक फड को लेकर पाबन्दी लगा दा वर्ष 2010 से आबुधाबी के सभी स्कलों में जंक फड और सॉफ्ट ड्रिंक बैन कर दी गई। सितम्बर 2010 में कैनेडा मे ओंटारियो की राज्य सरकार ने सभी स्कूलों में कैंडी, चॉकलेट, फ्रेंस और पॉप पर जहां रोक लगा दी वहीं डेनमार्क ने अक्टूबर 1011 में जंक फूड पर फैट टैक्स लगना शुरू कर दिया नैशनल इंस्टीटयूट आफ यटिएंटस की 2010 की डायिट्री गाइडलाइन सुझाव देती हैं कि साल्ट को नहीं खाना चाहिए या फिर कम से कम सेवन करना चाहिए। नैशनल इंस्टीटयूट ऑफ न्यूट्रिएंट्स के अनुसार एक दिन में एक व्यक्ति को 6 ग्राम से अधिक साल्ट नहीं खाना चाहिए वहीं डब्ल्यू एच ओ के अनुसार 5 ग्राम से अधिक साल्ट नहीं खाना चाहिए जबकि सेन्टर फार साइंस एण्ड इनवायरमेंट की जांच रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक साल्ट इंस्टेट नूडल्स में पाया गया जिसमें की टॉप रेमन नूडल्स के 100 ग्राम के एक पैकेट में 3.2 ग्राम वही मैगी मसाला के 100 ग्राम के पैकेट में 4. 2 ग्राम की मात्रा में साल्ट पाया गया वही चिप्स के 100 ग्राम के पैकेट साल्ट की मात्रा 1.2 से 3.5 के बीच पाई गई। नैशनल इंस्टीटयूट ऑफ न्यूट्रिएंट्स के अनुसार जहां पूर्ण भोजन में 50 प्रतिशत से 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होना ठीक माना गया है तो वहीं सेंटर फार सांइस एंड इनवायरमेंट की जाँच रिपोर्ट अनुसार कार्बोहाड्रेट की खतरे से उपर मात्रा 100 ग्राम के टॉप रेमन नामक नूडल्स में पाई गई जिसमे कि कार्बोहाइड्रेट की मात्रा 73.3 ग्राम जांच के दौरान पाई गई। वहीं ट्रांस फैट की बात की जाए तो डब्ल्यू एच ओ की रिपोर्ट के अनुसार पूरे दिन के भोजन में ट्रांस फैट की मात्रा 1 प्रतिशत से कम होनी चाहिए जबकि सेंटर फार साइंस एंड इनवायरमेंट की जांच में पाया गया कि के.एफ. सी के फ्रेंच फ्राइस के 100 ग्राम के पैक में 1.7 ग्राम ट्रांस फैट था जिसका अर्थ हुआ टोटल खाद्य पदार्थ का 9.2 प्रतिशत हिस्सा ट्रांसफैट के रूप में उपलब्ध था। अधिक मात्रा में साल्ट को ग्रहण करने से हाईपरटेंशन की बीमारी भी हो सकती है जबकि इंस्टेंट नूडल्स एक पैकेट को ग्रहण करने से हमारे आधे दिन के साल्ट का कोटा पूरा हो जाता है।
भारत में नेस्ले का कारोबार
भारत में नेस्ले का कारोबार _ नेस्ले उन मुट्ठी भर बहुराष्ट्रीय कम्पनी में से है जो आज़ादी से पहले भी भारत में कारोबार कर रही थीयह कम्पनी केवल कन्डेन्स्ड दूध और बेबी फूड का आयात करती थी। 1962 में मोगा पंजाब में उसने पहला दूध उत्पाद कारखाना लगायाकंडेस्ट दूध , बेबी फूड , चाय कॉफी का दूध, दूध का पाउडर, घी, कॉफी, चटनी, मैगी, सूप, चॉकलेट, जैसे अनेक उत्पाद यह कम्पनी बना रही है। तमिलनाडु के उपभोक्ता उत्पाद स्टाकिस्ट संघ ने शिकायत की थी कि नेस्ले मनमाने ढंग से स्टाकिस्टों को बदल देता है, पुराने स्टाकिस्टों को सामान न देकर नए को दे देता है। इस संघ ने नेस्ले के उत्पादों के बहिष्कार की धमकी दी थी। यह उत्पादों के पैकेट पर जितना वजन लिखता है उससे कम वजन उत्पाद पाए गए है। तमिलनाडु के खुदरा व्यापारी संघ ने 1996 में नेस्ले को उत्पादों को बेचने से इंकार कर दिया और नेस्ले को उसके उत्पाद वापस कर दिए।
____ 1995 में नेस्ले पर पंजाब स्वास्थ्य विभाग में सिंथेटिक दूध बेचने का आरोप लगाया था। पंजाब के फिरोजपुर शहर में नेस्ले के दूध की सैम्पल में सिंथेटिक दूध की मिलावट पाई गई। सिंथेटिक दूध स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त खतरनाक होता हैं। अपने उत्पाद अपने कारखाने में ना बनाकर किसी असंगठित क्षेत्र के लघु उद्योग में अपना सामान बनवाता हैं जिससे उत्पादन शुल्क देना पड़े। इससे कारीगरों को कम वेतन देना पड़ता हैं और असंगठित श्रमिकों से पाला भी नहीं पड़ता। 1993 में भारत के कॉफी बोर्ड को पता चला कि जो कॉफी निर्यात के लिए खरीदी गई थी, उसे नेस्ले ने घरेलू बाजार में बेचा। जब कॉफी बोर्ड ने जाँच की तो पहले तो नेस्ले ने कॉफी बोर्ड के अधिकार को चुनौती दी बड़ी मुश्किल से नेस्ले ने मंजूर किया कि कुछ मात्रा में निर्यात की कॉफी घरेल बाजार में बेची गई है पर जाँच दल के साथ नेस्ले ने सहयोग नही किया। इस बीच वाणिज्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी की तरफ से एक पत्र काफी बोर्ड को प्राप्त हुआ जिसमें जाँच समिति के निर्णय को रद्द कर दिया गया।
कॉफी बोर्ड को यह धमकी दी गई कि नेस्ले जैसे बड़े निर्यातकों के साथ ऐसा सलूक किया गया तो कॉफी बोर्ड को ही बन्द कर दिया जाएगा।
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