Wednesday, May 20, 2020

विदेशी उद्योगों का भारत में प्रवेश का माध्यम, पूँजी का धोखा और लूट


भारत में विदेशी कम्पनियाँ तीन तरीके से काम कर रही हैं -


1. सीधे अपनी शाखाएं स्थापित करके


2.अपनी सहायक कम्पनियों के माध्यम से


3.देश की अन्य कम्पनियों के साथ साझेदारी के रूप में प्राप्त आकड़ों के अनुसार 3500 से



जून 1995 तक प्राप्त आकड़ों के अनुसार 3500 से कुछ अधिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश में व्यापार कर रही है। 20,000 से अधिक विदेशी समझौते देश में चल रहे हैं औसतन 1000 से अधिक समझौते प्रतिवर्ष देश में होते है 1972 के अंत तक देश में कुल 740 विदेशी कम्पनियाँ थीं जिनमे से 538 अपनी शाखाएँ खोलकर व 202 अपनी सहायक कम्पनियों के रूप में काम कर रहीं थी सबसे अधिक ब्रिटेन की थीं और आज सबसे अधिक अमेरिका की हैं 1977 में विदेशी कम्पनियों की संख्या बढकर 1136 हो गयी। आजादी के पूर्व सन् 1940 में 55 विदेशी कम्पनियाँ देश में कार्यरत थीं। आज़ादी के बाद सन 1952 में किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार ब्रिटेन की 8 विशालकाय कम्पनियाँ के सीधे नियंत्रण में 701 कम्पनियाँ भारत में व्यापार कर रही थींईस्ट इण्डिया की सोची समझी रणनीति के तहत लाई गयी ये कम्पनियाँ सन 1860 तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भारतीय उपमहाद्वीप के शोषण के लिए धारदार हथियार बना चुकी थी। हर क्षेत्र मे घुसी हैं ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ । छोटा बड़ा प्रत्येक क्षेत्र इन विदेशी कम्पनियों का गुलाम हैविदेशी कम्पनियाँ घर घर में घुसी हैं। विदेशी कम्पनियों ने हमारी आत्मनिर्भर खेती को अपना गुलाम बना लिया है। उद्योगों के क्षेत्र में रद्दी तकनीकों का इस्तेमाल करके वातावरण को विषैला कर दिया हैं। हवा,पानी मिट्टी भी अब प्रदूषण मुक्त नही है। 


विदेशी पूँजी का धोखा


बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के किसी भी देश में काम करने से ऐसा नही है कि मात्र अधिक दुष्प्रभाव ही पड़ते हों अपितु उस देश में इन कम्पनियों के व्यापक और गहरे प्रभाव नज़र आते हैं । ये देश की नीतियाँ बदलवाने के लिए सीधे राजनैतिक हस्तक्षेप करती हैं सामाजिक जीवन भी इन कम्पनियों के प्रभाव से अछता नही रहता है। जब ये कम्पनियाँ काम करने के लिए अन्य देशो में जाती हैं तो उनके पीछे कुछ मिथ्या धारणाएँ काम करती हैजैसे- ये अपने साथ पूँजी लायेगी, आधुनिक तकनीक देगी, लोगो को रोजगार मुहैया करायेगी, देश का निर्यात बढायेगी, देश के भुगतान संतुलन की स्थिति को चुस्त-दुरूस्त रखेगी, देश की आर्थिक संसाधनो में और अधिक वृद्वि करेगी आदि -आदि। लेकिन असलियत इन सभी दावों से उल्टी होती हैं |


भारत में व्यापार कर रही 45 बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने जब व्यापार शुरू किया तो कितनी पूँजी लगायी थी इसके बारे में कुछ तथ्यों की सूची आकड़ों में निम्नलिखित है |





बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा जी निवेश मात्र एक धोखा है। हिन्दुस्तान जीवर, कोलगेट, सिबागाईगी जोसी सैकड़ों विदेशी कम्पनियों ने भारत में मात्र का लाख रुपयों से व्यापार शुरू कियालाभ कमा कमा कर कम्पनियों ने अपनी शेयर पूँजी करोड़ों रुपये कर लीअब ये पूँजी कम्पनियाँ रॉयल्टी, शुद्ध जाम और टेक्निकल फीस के रुपये में अरबों रुपये भारत से बाहर ले जा रही हैं। पिछले 11 वर्षों में ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वैधानिक रूप से 3244.15 करोड़ रूपये भारत से बाहर ले जा चुकी हैं। जबकि अवैधानिक तरीके से ये कम्पनियों इससे कई गुना अधिक राशि देश से बाहर ले जा चुकी हैं। इन बहराष्ट्रीय कम्पनियों की भारत में शेयर पूँजी लगभग 675 करोड़ रूपये मात्र हैये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश के खून पसीने की कमाई विदेशी मुद्रा का निर्यात अपने मूल देशों को कर रहीं हैंइनका अनुमान दो तीन उदाहरणों से लगाया जा सकता है |


हिंदुस्तान लीवर ने भारत में सन् 1933 में जब व्यापार शुरू किया तब इसकी मूल कम्पनी यूनी लीवर ने मात्र 24 लाख रूपये लगाये उसके पश्चात् इसने ऐसा जाल बिछाया कि 1990 में इसकी मूल कम्पनी यूनी लीवर की शेयर पूँजी 47.59 करोड़ रूपये हो गयी। इसमें 44.51 करोड़ रुपये की शेयर पूँजी बोनस के रूप में जुड़ी। 1975 से 1990 तक के बीच हिंदुस्तान लीवर ने 80.18 करोड़ रुपये लाभांश के रूप में भारत से बाहर भेज दिया। यह रकम रॉयल्टी और तकनीकी शुल्क के अतिरिक्त है।


इसी तरह कोलगेट - पामोलिव कंपनी ने सन् 1937 में मात्र 1.5 लाख रुपये से अपना कारोबार शुरू किया। 1989 के आते-आते इस अमेरिकी कंपनी की शेयर पूँजी बढ़कर 12.57 करोड़ रुपये हो गयीइसमें 12.56 करोड़ की पूँजी बोनस शेयर के रूप में जुड़ी | कोलगेट -पामोलिव 1977 से 1989 के बीच 8.42 करोड़ रुपये लाभांश के रूप में भारत से अमेरिका ले गयी।


स्विस कम्पनी, सिबागाईगी ने 1947 में 48.75 लाख रुपये से कारोबार स्विस कम्पनी, सिबागाईगी ने 1947 में 48.75 लाख रुपये से कारोबार शुरू किया। 1991 में इस कंपनी की शेयर पूँजी बढकर 13.54 करोड़ रुपये हो गयीइलेक्ट्रॉनिक उद्योग में लगी फिलिप्स कम्पनी ने 1947में सिर्फ 10 लाख रुपये से अपना कारोबार शुरू किया और 1956 में इस कंपनी ने 10 करोड़ रुपये मुनाफे के रूप में भारत से हॉलैंड भेज दिये।


रिजर्व बैंक की 1992 की रिपोर्ट के अनुसार 1987-1988 में 326 बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की शेयर पूँजी 1445.23 करोड़ रुपये थी इनमे 60 प्रतिशत हिस्सा भारतीय लोगों का हुआ था 610 करोड़ रुपये बैंकों के थे और 50 करोड़ सरकार के थे।


सामान्यतयः बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ जितनी पूँजी लेकर आती हैं इससे कई गना अधिक एक ही वर्ष में देश से बाहर भेज देती हैं उदाहरण के लिये 'गुड इयर ' कम्पनी ने भारत में एक करोड़ पूँजी का निवेश अपना कारोबार पर करने के लिए किया था और एक ही वर्ष में पूँजी निवेश का 7 गना देश से भेज दिया। इसी तरह बायर इंडिया का भारत में आरंभिक पूँजी निवेश 8.20 करोड़ रुपये था लेकिन 1989-1990 में ही इस कंपनी ने 13.3 करोड रुपये मुनाफे के रूप में भारत से बाहर भेज दिए। गैलोक्सो इंडिया की भारत में चकता पँजी 2.88 करोड़ रुपये हैं लेकिन इस कंपनी ने 1989-1990 में 3.93 करोड रुपये मुनाफे के रूप में देश से बाहर भेज दिये |


बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ मुनाफे, लाभांश रॉयल्टी और तकनीक फीस के रूप में कितना धन देश से बाहर ले जा रही हैं इसकी जानकारी निम्न है -



सन 1981 में देश में विदेशी पूँजी निवेश तथा साथ ही साथ उसी वर्ष में देश से बाहर जाने वाली पूँजी का आँकड़ा निम्नलिखित है



 


 


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