भोर की दहलीज पर / छूट गए स्वप्न सा / इस खुमारी में / छूट गया एक शब्द / प्रेम - / जो न बचाया गया / न सहेजा गया / पंख लगा कर उड़ गया / चिरैये की तरह ,,,,,
यह कविता एक ऐसी बेचैन लेखिका सुमति अय्यर की है , जो इन्सान के जीवन से ही नहीं , साहित्य से भी आलोप हो रहे प्रेम की तलाश अपनी कविताओं और कहानियों में करती रही।
सुमति अय्यर का जन्म 18 जुलाई 1954 को मद्रास ( अब चेन्नेई ) में विशुद्ध परम्परावादी दक्षिण भारतीय शैव बाह्मण परिवार में हुआ था।लेकिन उनकी उच्च शिक्षा कानपुर में ही हुई थी। यही रहकर उन्होंने पी०एच०डी० की। अपनी पी०एच०डी० के दौरान ही वे दिल्ली चली गयीं । जहां पर वे हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक रमेश बक्षी के सम्पर्क में आई। हालांकि कविताएं और कहानियां वे कालेज के दिनों में ही लिखने लगीं थीं लेकिन रमेश बक्षी के सानिध्य में आने के बाद उनके व्यक्तित्व और लेखन दोनों में बदलाव आया । उस दौर की उसकी पहली कहानी " कैक्टस के फूल " साप्ताहिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुई। इसी कहानी से उसकी एक अलग साहित्यिक पहचान बनी।
हालांकि सुमति अय्यर भावुक और संवेदनशील बचपन से ही थी और साहित्य का संस्कार उसे आपने तमिल लेखक पिता से मिला था पर दिल्ली में रमेश बक्षी के साथ रहते हुए उसकी सोच और विचारधारा में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ था। वह खुद को व्यक्ति के तौर पर शिद्दत से महसूस करने लगी और उसमें परम्परागत भारतीय विवाह संस्था के प्रति घोर असन्तोष भर गया था। यही असन्तोष उसकी कविताओं और कहानियों में साहित्य बन कर प्रकट होने लगा था - " आजी आप योनि बनी रही , गर्भाशय बनी रही , आपने सावन की हरियाली हरी,चूड़ियों में ढूंढ़ ली , पकवान बनाने का दायित्व ओढ़ लिया, बसंत देखना चाहा आपने तो आपके लिए पीले कपड़े सिल गए , मौसम के बजाए आम , नीबू , पापड़ , गुझिए , आपको काम मिलता गया , अपने दिमाग़ में यही भर लिया आपने आजी। "
( कहानीः देहान्तरण )
सुमति अय्यर ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में अपने एक साक्षात्कार में कहा था - " कई बार ऐसा भी हुआ है कि अतिशय संवेदनशीलता के बावजूद जब तकलीफदेह स्थिति सामने हो तो डफर स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे में आप तकलीफ में हों या सुख में -
जी तो सकते हैं पर लिख नहीं सकते। ऐसा तो कई बार हुआ है, फिर भी जब स्थितियां सहन नहीं होतीं , उनमें से गुजरना बरदाश्त से बाहर हो तो कविताएं लिख लेती हूं , पेण्टिग कर लेती हूं या फिर जंगल की ओर निकल जाती हूं ,,,, अपने अधकचरे फोटोग्राफी ज्ञान के साथ। पर इन सब के बावजूद भीतर का उफान शांत नहीं हो पाता तो किसी दिन बैठ जाती हूं पर एक सिटिंग में नहीं , कई सिटिंग में ,,,, ।"
सुमति अय्यर ने बी० ए० अंग्रेजी , हिन्दी और संस्कृत से किया था। संस्कृत में उसके बी० ए० में नब्बे प्रतिशत अंक थे। संस्कृत साहित्य में गहरी रूचि के चलते प्रकृति के प्रति गहरा लगाव था उसमें। उसने अपने घर के टैरस को ढेर सारे पौधों के गमलों से सजा कर एक छोटी फुलवारी में बदला हुआ था। नौकरी पर लगातार महीने - दो महीने जाते रहने पर ही वे ऊबने लगती थीं और छुट्टी लेकर अकेले ही जंगल और पहाड़ों की ओर निकल जाती थी।
रमेश बक्षी के साथ कुछ काल तक मित्रवत रहने के बाद सुमति अय्यर ने अपने एक सजातीय व्यक्ति से विवाह कर लिया था । विवाह के बाद जब वह रमेश बक्षी के जन्मदिन के सेलीब्रेशन पर दिल्ली आई थी तो पंजाबी की लेखिका अमृता प्रीतम ने अपनी पंजाबी पत्रिका " नागमणि " के लिए उसका साक्षात्कार लेते हुए उससे पूछा था - " कल मैंने देखा था कि रमेश ने अपने तकिये के पास रखे हुए कैक्टस के गमले की एक टहनी को दो चूड़ियां पहना रखी थीं ,,,, शायद तुम्हारी बाह समझ कर। "
सुमति अय्यर - " हां , मेरी बांह समझ कर। यही गहराई है, जिसे रमेश ने अब जाना है। "
बाद में सुमति अय्यर ने अपनी कहानी " शेष संवाद " में यह बात शिद्दत से महसूस की कि - " प्रतिबद्धता रहित सम्बन्ध जंगली होते हैं और उनको जीने वाला खूंखार जानवर । "
सुमति अय्यर दक्षिण भारतीय शैव बाह्मण थी। साहित्य , कला और संगीत उसके खून में शामिल था।हालांकि 39 वर्ष की आयु में ही उसकी जीवन यात्रा समाप्त हो गई। लेकिन इतनी ही अल्प आयु में उसके चार कहानी संग्रह ( घटनाचक्र , शेष संवाद , असमाप्त कथा और विरल राग ) दो कविता संग्रह ( मैं , तुम और जंगल और भोर के हाशिए पर ) , एक नाटक ( अपने - अपने कटघरे ) , हिन्दी लेखन के साथ ही तमिल तथा अंग्रेजी से करीब 15 उपन्यासों व नाटकों का अनुवाद । अनुवाद कार्य के लिए केन्द्रीय हिन्दी निर्देशालय व्दारा पुरस्कृत ।
साहित्य के आतिरिक्त वे भरतनाट्यम की नृत्याँगना भी थी और एक शौकिया चित्रकार भी। कर्नाटक संगीत की भी अच्छी जानकार थीं वह।
सुमति अय्यर का जीवन और साहित्य प्रेम और दाम्पत्य इन दो ध्रुवों पर टिका हुआ था। वे दाम्पत्य में प्रेम और प्रेम में दाम्पत्य तलाशती रही। शायद नये युग की पढ़ीं - लिखी नई नारी की भी तलाश यही है।
साभार : स्त्री दर्पण फेसबुक ग्रुप
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