Sunday, March 14, 2021

चुप रहो

कवि सुरेश साहनी 

कविता जगत में अपनी सरल एवं प्रभावी कविताओं के माध्यम से कमाल करने वाले कानपुर के सुरेश साहनी जी बेहद सृजनशील व्यक्तित्व के धनी होने के साथ ही सौम्यता के प्रतीक हैं |  उनकी रचनाएँ जितनी सरल और मन को संतुष्टि देने वाली होती हैं उतनी ही गहरी भी होती हैं |


चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।
पीर उपचार  होने तलक चुप रहो ।।

थरथराये अधर  मुंद गये फिर नयन
गात कम्पित हुए कह गयी क्या छुवन

पूर्ण अभिसार होने तलक चुप रहो।।
चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

जब से लगने लगा प्यार है ज़िन्दगी
प्यार से मृत्यु के पार है ज़िन्दगी

ज़िन्दगी पार होने तलक चुप रहो।। 
चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

तुम निहारो हमे हम निहारे तुम्हें
खो के इक दूसरे में पुकारे तुम्हें

मौन उदगार होने तलक चुप रहो।।
चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

प्यार क्या है कोई मौसमी फल नहीं
प्यार की राह इतनी सरल भी नही

राह गुलजार होने तलक चुप रहो।।
चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

नाद अनहद सुनें होश भी ना रहे
पूर्ण आनन्द हो जोश भी ना रहे

एक आकार होने तलक चुप रहो।।
चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

प्रेम है राधिका प्रेम यदुनन्द है
प्रेम ब्रज में बसा सत चिदानंद है

रास गुंजार होने तलक चुप रहो।।
चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

मौन अभ्यर्थना है स्वयम ब्रम्ह की सोहम खण्डना द्वेष की दम्भ की
हाँ अहम क्षार होने तलक चुप रहो।।
चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

मौन  शिव सत्य सुन्दर की अनुभति है
शब्द के ब्रम्ह होने की प्रतिभूति है
अर्ध्य स्वीकार होने तलक चुप रहो।।
 चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

मूल आधार से दल सहस्त्रार तक
दल सहस्त्रार से ब्रम्ह के द्वार तक
जय गुणाकार होने तलक चुप रहो।।

चुप रहो प्यार होने तलक चुप रहो।।

देह ही घाट है देह ही नाव है
देह से पार ही मुक्ति का ठाँव है
देह पतवार होने तलक चुप रहो।।

  

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