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अभिनय सिंह |
बचपना भुलाकर समझदार बन गए ,
कर्ज़ देने वाले कर्ज़दार बन गए |
गाँव में सबकुछ अपना था ,
सिर्फ तुझे संवारने में ए जिंदगी !
शहर में आकर किराएदार बन गए।
आजकल एक नारा चला है सरकार का "मेरा देश बदल रहा है"
सरकार की बातों से मैं सहमत हूँ ,
क्योंकि चोर यहाँ चौकीदार बन गए |
लुटेरे ही यह अब हवलदार बन गए |
जिनको ये पता ही नहीं कि तेरी कीमत क्या है,
वही आज तेरे सबसे बड़े खरीददार बन गए ।
आरक्षण की इस आंधी की क्या बात करे दोस्तों !
जो काबिल थे वो आज जॉब ढूंढ़ रहे हैं ,
जो काबिल न थे वो उसके हकदार बन गए।
आरक्षण ने ज़ुल्म कुछ इस कदर किया कि,
कुछ पंडित/सवर्ण भी कागज़ में चमार बन गए ।
कला का "क" भी पता नहीं जिन्हें,
आज वो फरेबी कलाकार बन गए |
अभिनय के नाम पर धब्बा है जो ,
वो सब अभिनेता सुपरस्टार बन गए |
10 comments:
Superr, reality.
मेरी कविता को सम्मान देने के लिए इस मंच पर पोस्ट करने के लिए मै आपकी टीम को तहे दिल से शुक्रिया कहना चाहता हूं । बहुत बहुत धन्यवाद आप सबका और विशिष्ट रूप से इशिका जी के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।
Beautifully composed
प्रयास प्रसंशनीय है, तुकबंदी की अंधी दौड़ में न भागकर रदीफ़-काफ़िया का सुंदर प्रयोग है। मुझे नहीं पता गेयता प्रदान करने की कोशिश की गई है या नहीं किन्तु, अगर की गई है तो और सुधार की आवश्यकता है। छंद योजना भी श्लाघ्य है।
वाह वाह वाह वाह
बेहतरीन भाई
Bahot khub bhai
Waah wahh!!!! Dil se likha gaya! 💞
Beautifully penned:))
Nice👌
🙏🙏
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