Sunday, March 14, 2021

जुमले की झंकार

अनिल कुमार मंडल  

म तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में।

इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में।

हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में।

निर्दय होकर काट रहे हैं, धार नहीं हैं कटार में।

इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में।

रोटी, पानी, दवा भी महंगी,सांस न मिले उधार में।

हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में।

नौकरी छुटी,बीबी रूठी,जीवन हैं मंझधार में।

इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में।


 चालक देश के बदल रहे हैं,कमी हैं जबकि कार में।

हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में।

चंगु, मंगू दोनों एक हैं, समझे ये विस्तार में।

इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में।

जरदारी हो या हो मुफलिस, कौन बचा संसार में।

हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में।

जीने की जहाँ होड़ लगी हैं, हम भी खड़े कतार में।

इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में।

                                    

                               

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