Monday, July 26, 2021

कानपुर के महेंद्र गुप्ता 'बब्लु' ने 3400 किमी• की साइकिल यात्रा का किया आगाज़

महेंद्र गुप्ता उर्फ बब्लू कानपुर पी रोड पर प्राचीन बल खंडेश्वर मंदिर के पास के निवासी हैं | आस्था में अटूट विश्वास होने के नाते यह समय-समय पर धार्मिक आयोजनों का न सिर्फ आयोजन कराते हैं बल्कि बढ़-चढ़कर अन्य धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते हैं तथा धार्मिक यात्राओं पर जाते रहते हैं |


करीब 3 माह पहले इन्होंने 750 किमी• खाटू श्याम तक की यात्रा पूरी करने का लक्ष्य रखा और उसको बड़ी ही सफलता से पूरा भी किया | 

वर्तमान में इन्होंने 45 दिन के लक्ष्य के अंतर्गत 3400 सौ से 4000 किलोमीटर तक की साइकिल यात्रा करने का निर्णय किया है |

जिसमें कानपुर से मेहंदीपुर बालाजी - खाटू श्याम - पुष्कर - सोमनाथ - नागेश्वर बाबा - भीमाशंकर  - मुंबई - नासिक - त्रंबकेश्वर - महाकालेश्वर - उज्जैन -  ओमकारेश्वर आदि स्थान शामिल है और फिर पुन: कानपुर वापसी...





सीसामऊ प्रेम नगर के निवासी महेन्द्र गुप्ता जी की साइकिल यात्रा के शुभारम्भ कार्यक्रम में कुसुमा ग्राफिक्स के महेश गोस्वामी, सीसामऊ विधानसभा के श्री अवनीश सलूजा जी (जगत चाचा) ,अनिल मिश्रा जी, सलमान जी,आकाश जी,रोहन जी,रिषभ जी,मिहिर जी,शशांक जी,करन जी, मानी जी, अंकुर जी,शानू जी,लव जी समेत तमाम साथियों ने मंगलमय यात्रा के लिए शुभकामनाएँ दी |


वीडियो देखने के लिए क्लिक करें 👆

महेंद्र गुप्ता उर्फ 'बब्लू' बताते हैं कि इस साइकिल यात्रा का उद्देश्य धर्म के प्रति समर्पण तो है ही लेकिन उसके ही साथ इनका सामाजिक उद्देश्य है कि धर्म से पीछे हटने वाले युवाओं को वह अपनी साइकिल यात्रा के माध्यम से जागरूक कर सकें और लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करते हुए भी इस बात के लिए प्रेरित कर सकें कि अधिक से अधिक लोगों को साइकिल चलानी चाहिए जिससे न सिर्फ उनके स्वास्थ्य को लाभ हो सके बल्कि पर्यावरण की भी सुरक्षा हो सके |


Saturday, July 17, 2021

मेंस्ट्रूअल कप, पर्यावरण के लिए अहम कदम उठाएंगे महिलाएं



मां भगवती मेमोरियल चैरिटेबल सोसायटी के द्वारा चलाए जा रहे "स्वच्छ मिशन"अभियान के अंतर्गत डॉ अपूर्वा वशिष्ठ, ब्रांड एंबेसडर "स्वच्छ मिशन" दिल्ली शाखा द्वारा मेंस्ट्रूअल हाइजीन पर एक वेबीनार का आयोजन किया गया।जिसका मुख्य उद्देश्य महावारी के समय महिलाओं को होने वाली समस्याओं से अवगत कराना और उन 5 दिनों में स्वच्छता और सुरक्षा के लिए जागरूक करना है।

इस अवसर पर संस्था के सदस्यों ने वेबिनार के द्वारा लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स के उन 5 दिनों में स्वच्छता और सुरक्षा के लिए जागरूक किया। पीरियड्स के बारे में बात करने में न केवल गांव में बल्कि शहरों में भी महिलाएं झिझकती है है और इसी झिझक के कारण बहुत सी महिलाएं अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल देती है। पीरियड्स के दौरान कपड़े की जगह सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करना सुरक्षात्मक होता है लेकिन लंबे समय तक एक ही पैड को लगाने से पसीने के कारण पैड में नमी आ जाती है क्योंकि सेनेटरी पैड्स में लगभग 90% प्लास्टिक होती है देर तक ऐसा होने के कारण वजाइना में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है वही रक्त स्राव और पसीने की वजह से बदबू आने लगती है योन रोग और प्रजनन मार्ग में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, ऐसे दिनों में सफाई को नजरअंदाज करने से सर्वाइकल कैंसर जैसी समस्या भी हो सकता है।

समस्याओं के समाधान के लिए संस्था की सचिव अनुराधा सिंह ने महिलाओं को मेंस्ट्रूअल कप को इस्तेमाल करने की सलाह दी क्योंकि यह पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा। एक मेंस्ट्रूअल कप का इस्तेमाल 10 साल तक किया जा सकता है और जब इसे डिस्पोज ऑफ किया जाएगा तो भी यह पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं होगा ।जबकि एक सेनेटरी पैड में 90% से ज्यादा प्लास्टिक होता है जिस नष्ट होने में लगभग 300 से 500 वर्ष तक का समय लग जाता हैं।


मेंस्ट्रूअल कप के इस्तेमाल से महिलाओं में जलन, खुजली,  गीलेपन और कैंसर जैसी कोई समस्या नहीं होती है यह महिलाओं और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद है।

इस वेबीनार में स्वच्छ मिशन की इंदौर शहर प्रभारी कविता दीक्षित, शुभम श्रीवास्तव, मुस्कान फाउंडेशन से पूजा गुप्ता, लवली सक्सेना ,सूचिसमिता मिश्रा ,सुवर्ण बंसल ,श्रेया गुप्ता  ,शिखा हजेला  ,रश्मि पाल ,मनीषा दीक्षित आदि उपस्थित रही।

Friday, July 16, 2021

दिल्ली में प्रेस वार्ता का आयोजन:हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए जन अभियान जरूरी

दिल्ली स्थित प्रेस वार्ता में केंद्रीय अध्यक्ष डॉ. रवींद्र  शुक्ल , केंद्रीय प्रभारी  प्रो. माला मिश्रा , महामंत्री डॉ. रामजी दुबे , अध्यक्ष प्रो. रमा ,विदेश कार्यकारिणी के महामंत्री  प्रतिबिम्ब बडथ्वाल,डायमंड बुक्स प्रकाशन  के अध्यक्ष एन .के. वर्मा इत्यादि अनेक वरिष्ठ हिंदी सेवी विद्वान  उपस्थित रहे । इस प्रेस वार्ता में हिंदी की राष्ट्रीय व वैश्विक स्थिति पर चर्चा एवं आगामी योजनाओं पर विस्तार पूर्वक चर्चा की गई । 

यह प्रेस वार्ता एक साथ देश - विदेश के विभिन्न स्थानों पर आयोजित की गई । डॉ. शुक्ल ने कहा कि हिंदी की इस राष्ट्रव्यापी मुहिम में विभिन्न विश्वविद्यालयों और विद्यालयों के हिंदी प्राध्यापकों को एकजुट होकर अग्रणी भूमिका निभानी होगी ।उन्होंने दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर में हिंदी के बढ़ते प्रेम का जिक्र किया और हिंदी साहित्य भारती की प्रदेश और जिला कार्यकारिणी द्वारा किए जा रहे उल्लेखनीय कार्यों की चर्चा  एवं सराहना की गई । हिंदी माध्यम में शिक्षा ,रोजगार ,न्याय की भाषा के रूप में हिंदी तथा हिंदी में लिखा जाने वाले साहित्य और लेखकों के केंद्र में लाना जैसे कार्य शामिल हैं ।प्रो  .माला ने कार्यकारिणी के उद्देश्यों की विस्तार पूर्वक चर्चा की और कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के संवैधानिक पद पर अधिष्ठित करवाने के लिए राष्ट्रपति जी को 25 ,000 से भी अधिक पत्रों का ज्ञापन सौंपा जाएगा। उन्होंने कहा कि हिंदी भारत के जन जन की उसके प्राणों की भाषा है उसके साथ देश का मान -सम्मान जुड़ा है।अतः उसकी उपेक्षा नही होनी चाहिए ,उसका अंगीकार सहर्ष होना चाहिए। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है।राष्ट्र को सशक्त बनाने है तो  हिंदी को सफल बनाना होगा और यही हिंदी साहित्य भर्ती का मूल उद्देश्य है।प्रो रमा ने कहा कि हिंदी बोलने और पढ़ने में हीनता बोध नहीं बल्कि गर्व का बोध होना चाहिए और हिंदी सेवियों को पर्याप्त सम्मानित किया जाना चाहिए।

इस प्रकार हिंदी साहित्य भारती  के कार्यों ,प्रयासों  और योजनाओं के संबंध में  सार्थक चर्चा के साथ प्रेस वार्ता सम्पन्न हुई।इस प्रेस वार्ता में हिंदी और अंग्रेजी के अनेक प्रतिष्ठित समाचार पत्रों तथा चैनलों से पत्रकारों की उपस्थिति रही ।



Monday, July 5, 2021

भारत में मीडिया की दुर्गति

 - शैलेन्द्र चौहान


इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का काम यह होना चाहिए था कि वह लोगों को जागरूक करे किन्तु टीआरपी के चलते समाचार चैनल इन दिनों किसी भी खबर को सनसनी बनाकर पेश करने से नहीं चूक रहे। यह चिंताजनक स्थिति है। अगर हम भारतीय समाचार पत्रों तथा इलेक्ट्रानिक चैनलों पर प्रसारित होने वाले समाचारों को देखे तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि इस देश में अब सूचना माध्यमों के लिए एकमात्र प्रमुख चिंता है राजनीतिक उठापटक और चंद राजनीतिज्ञों की चमक दमक एवं शौहरत का प्रचार प्रसार। बाकी सब बेकार है कोरोना के अलावा। महामारी है तो समाचार देना अनिवार्य है। या फिर निकट अतीत में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या। चुनावी मौसम में तो चैनलों की बल्ले बल्ले होती है। यह सब नहीं तो क्रिकेट। महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था अब समाचार नहीं बचे हैं या हाशिए के समाचार हैं।


सचाई यह भी है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के समक्ष इन दिनों जिस तरह साख का संकट उत्पन्न हुआ है उसने पत्रकारिता के इस माध्यम को अंदर तक खोखला कर दिया है। समाचार चैनलों को यह बात जितनी जल्दी हो समझ लेना चाहिए वरना यदि देर हो गई तो यह उनके अस्तित्व का संकट भी हो सकता है। सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत, प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता और वेब जर्नलिज्म की मजबूती ने इस माध्यम की प्रासंगिकता और भरोसे को तोडा है। सच को सामने लाना मीडिया का दायित्व होता है पर उस सच की कीमत कौन चुकाए? इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तुलना में प्रिंट मीडिया ज्यादा सशक्त है। प्रिंट मीडिया सावधानीपूर्वक अध्ययन और समझने के बाद खबर देता है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पल-पल के समाचार तत्काल देता है। समाज में जागरुकता लाने में अखबारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह भूमिका किसी एक देश अथवा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, विश्व के तमाम प्रगतिशील विचारों वाले देशों में समाचार पत्रों की महती भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता। मीडिया में और विशेष तौर पर प्रिंट मीडिया में जनमत बनाने की अद्भुत शक्ति होती है। नीति निर्धारण में जनता की राय जानने में और नीति निर्धारकों तक जनता की बात पहुंचाने में समाचार पत्र एक सेतु की तरह काम करते हैं। हम स्वयं को लोकतंत्र कहते हैं तो हमें यह भी जान लेना चाहिए कि कोई भी राष्ट्र तब तक पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक नहीं हो सकता जब तक उसके नागरिकों को अपने अधिकारों को जीवन में इस्तेमाल करने का संपूर्ण मौका न मिले। मीडिया समाज की आवाज शासन तक पहुंचाने में उसका प्रतिनिधि बनता है। लेकिन आजकल उलटा ही चलन है। आज प्रधान सेवक और उनकी पार्टी एवं सरकार के अतिरिक्त भारत देश में और कुछ समाचार बचा ही नहीं है। बाकी सेंसेक्स है, आई पी एल है। अर्थात आर्थिक समाचार और व्यवसाय। अब सवाल यह उठता है कि वाकई मीडिया अथवा प्रेस जनता की आवाज हैं? आखिर वे जनता किसे मानते हैं ?

उनके लिए शोषितों की आवाज उठाना ज्यादा महत्वपूर्ण है अथवा युद्ध और हथियारों की रिर्पोटिंग करना। आम आदमी के मुद्दे बड़े हैं अथवा किसी सेलिब्रिटी की निजी जिंदगी ? आज की पत्रकारिता इस दौर से गुजर रही है जब उसकी प्रतिबद्धता पर प्रश्रचिन्ह लग रहे हैं। समय के साथ मीडिया के स्वरूप और मिशन में काफी परिवर्तन हुआ है। अब गंभीर मुद्दों के लिए मीडिया में जगह घटी है। अखबार का मुखपृष्ठ अमूमन राजनेताओं की बयानबाजी, उनकी प्रशस्ति, क्रिकेट मैचों अथवा बाजार के उतार-चढ़ाव को ही मुख्य रूप से स्थान देता है।

गंभीर से गंभीर मुद्दे अंदर के पृष्ठों पर लिए जाते हैं तथा कई बार तो सिरे से गायब रहते हैं। समाचारों के रूप में कई समस्याएं जगह तो पा लेती हैं परंतु उन पर गंभीर विमर्श के लिए समय की या पृष्ठों की कमी हो जाती है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत में किस प्रकार से सामाजिक ढांचे में बदलाव हो रहा है इसके बारे में भी भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों में सामान्यत: बहुत कुछ पढ़ने को नहीं मिलता। टी वी चैनलों का तो हाल यह है कि दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ, बंगलोर, गोआ, पटना और श्रीनगर जैसे राजनीतिक गर्मी से भरे केन्द्रों के अलावा बाकी के बारे में उनकी चिन्ताएं तथा संवेदनाएं लगभग मर चुकी हैं। यहां के अखबारों में ज्यादातर खबरें राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों से जुड़ी हैं। एक दो पेज खेल के फिर अपराध। बचे हुए समय में फिल्मी मनोरंजन ठुसा होता है। तो यह है भारत देश की वह तस्वीर जो मीडिया सृजित कर रहा है। और बाकी जो कुछ भी है वह इतना गौण, नगण्य तथा प्रकाशन और प्रसारण के अयोग्य है कि जिसके बारे में डिजिटल मीडिया का कुछ न बोलना और प्रिंट मीडिया का न छापना ही इस देश के बौद्धिक संपादक, पत्रकार और लेखक सर्वथा उचित मानते हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और पर्यावरण को बहुत कम स्थान मिलता है। अब किसानों की आत्महत्याएं खबर रह ही नहीं गई हैं। उनका आंदोलन भी अब खबरों के बाहर है।  

ग्रामीण समस्याओं और सामाजिक कुरीतियों से त्रस्त भारतीय समाज के बारे में, गरीबी और स्वास्थ्य की विसंगतियों और शिक्षा के एक साधारण नागरिक की पहुँच से दूर होने और बेरोजगारों की फौज दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने जैसे मुद्दों की कोई परवाह समाचारपत्रों में देखने को नहीं मिलती। यह मैंने स्वयं महसूस किया है कि इन मुद्दों पर लिखने वाले लेखकों पर कतई कोई ध्यान नहीं दिया जाता। उनका लेखन पूर्वाग्रही सम्पादकों द्वारा अलक्ष्य किया जाता है क्योंकि वह सत्ता का प्रतिपक्ष होता है। पिछले कुछ वर्षों में हम देख रहे हैं कि मानवाधिकारों को लेकर मीडिया की भूमिका लगभग तटस्थ है। कश्मीर और शाहीनबाग छोड़भी दें तो विगत में हम इरोम शर्मिला और सलवा जुडूम के उदाहरण देख सकते हैं। ये दोनों प्रकरण मानवाधिकारों के हनन के बड़े उदाहरण है लेकिन मीडिया में इन प्रकरणों पर गंभीर विमर्श अत्यंत कम हुआ है। सरकार से असहमति जताने पर और नीतियों का विरोध करने पर गैर जमानती धाराएं लगाकर जेलों में ठूंस दिया जाता है। मीडिया सरकार के समर्थन में आ जाता है।

महिलाओं और दलितों पर अत्याचारों की तो लंबी श्रंखला है हाल में उप्र, मप्र, कर्नाटक में कई लोमहर्षक कांड हुए हैं।एकाध पर हो-हल्‍ला हुआ फिर सब जैसा था वही है।राजनैतिक स्वतंत्रता के हनन के मुद्दे पर मीडिया अक्सर चुप्पी साध लेता है। मीडिया की तटस्थता स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है। लोकतंत्र में राजद्रोह की कोई अवधारणा नहीं है और न होनी चाहिए। अपनी बात कहने का, अपना पक्ष रखने का अधिकार हर व्यक्ति के पास है, चाहे वह अपराधी ही क्यों ना हो। राजसत्ता का अहंकार व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को यदि राजद्रोह मानने लगे तो लोकतंत्र का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा ।

ऐसा लगता है कि जहां सत्ता को प्रभावित करने वाली गोटियां और शतरंज की बिसात नहीं होती वे क्षेत्र भारत वर्ष की तथाकथित मुख्यधारा के समाचार माध्यमों के लिए संदर्भहीन हो जाते हैं। शायद अब यहां केवल राजनीति और कमीशनखोरी के कारखाने भर शेष हैं। व्यक्तिगत लाभ और अकूत धन कमाने वाली राजनीति की दुकानें हैं, भ्रष्ट राजनीति के विद्यालय हैं, राजनीतिक अपराधियों के माफिया अड्डे हैं। जिनकी अधिकांश मीडिया और मीडियाकर्मियों से सांठगांठ है। तभी तो सम्पादकों और एंकरों के नखरे ऐसे होते हैं जैसे वे ही आम जनता के तारनहार हैं। वे इसी घमंड से चूर होते हैं। विडम्बना तो यह है कि मीडिया के जो लोग यह कहते हैं कि वे राजनीति से दूर हैं तथा जो राजनीति के संदर्भ में दिल खोलकर आलोचनात्मक टिप्पिणयां करते हैं, वे स्वयं राजनीति के दलदल में गले तक धंसे दिखते हैं। इस बात के तमाम उदारहण हमारे सामने है।


साभार - https://bhadas.blogspot.com/2021/06/blog-post_2.html
संपर्क: 34/242, सेक्‍टर-3, प्रतापनगर, जयपुर-302033
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चित्रगुप्त और ओशो की ये बात-चीत बदल देगी आपका नज़रिया

अभी चित्रगुप्त जी से बात हुई...। 

हमने पूछा- "महाराज, जो हिंदू, रात-दिन मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगे हुए हैं, धर्म का काम कर रहे हैं,  उनको मोक्ष तो मिलेगा न?"

चित्रगुप्त जी ने हमें घूर कर देखा, फिर बोले-"तुम इसे धर्म का काम काम समझते हो? अरे, उनको आवागमन के चक्र से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी। दोबारा धरती पर भेजा जायेगा। और सुनो,  ऐसे लोगों की अलग से लिस्ट बन रही है। इन सभी का अगला जन्म किसी मुस्लिम घर में होगा। स्वर्गसभा में नया विधान पास हो चुका है।" 

"अरे..क्या कह रहे हैं आप...ऐसा क्यों होगा महाराज?"- हमने हैरान होकर पूछा

"ऐसा इसलिए कि घृणा में डूबे ये लोग अपने बच्चों के मन में जो नफ़रत भर रहे हैं, उसके शिकार बनकर, उस पीड़ा को ख़ुद महसूस करें। कुछ तो अपने नाती-पोतों के हाथ ही लिंच होंगे!"- चित्रगुप्त बोले।

"यानी जो सुबह-सुबह ज़हर की शाखा लगाते हैं, सबको लिंच होना पड़ेगा! वह भी अपनी संततियों के हाथ!..लेकिन महाराज नफ़रत तो मुसलमान भी फैलाते हैं और उनके यहाँ तो पुनर्जन्म भी नहीं होता...उन्हें क्या सज़ा होगी?

"उन्हें भी मिलेगी, क़यामत के रोज़ उन्हें भरपूर सज़ा मिलेगी। अल्ला मियाँ ने नरक का सबसे बड़ा कड़ाहा तैयार रखने को कहा है। उसी में मिट्टी के तेल से तले जायेंगे ऐसे लोग"- चित्रगुप्त बोले।

"क्या मज़ाक़ कर रहे हैं महाराज! आपका अल्ला मियाँ से क्या नाता? वे आपसे कुछ क्यों कहेंगे? उनका दफ़्तर तो अलग होगा न?"- हमारी हैरानी की सीमा न थी।

"तुम हमें धरती वालों की तरह बेवक़ूफ़ समझे हो? यहाँ सब एक हैं। अल्ला मियाँ को जब हिंदुओं को दर्शन देना होता है तो  माला-मुकुट पहन लेते हैं और मुसलमानों के लिए अदृश्य रहते हैं, निराकार! ....जो जैसा चाहता है, उसे वैसे ही मिलते हैं...पर मिलते उसे ही हैं जिसके हृदय में सबके लिए प्रेम होता है! ख़ैर, जल्दी में हूँ। यमराज के साथ राउंड पर जाना है।"- कहकर चित्रगुप्त चले गये। 

यमराज के भैंसे की आवाज़ क़रीब आ रही थी। देखा तो नथुने फड़क रहे थे। लगा कि अपनी सींग हमारे सीने में धँसाने को बेक़रार है, जहाँ नफ़रत पलती है, हवस मचलती है।

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मैं हिंदू हूँ -ओशो ने कहा!

जब से मैंने होश संभाला है लगातार सुनता आ रहा हूँ कि

बनिया कंजूस होता है!

नाई चतुर होता है!

ब्राह्मण धर्म के नाम पर सबको बेवकूफ बनाता है!

यादव की बुद्धि कमजोर होती है!

राजपूत अत्याचारी होते हैं!

दलित गंदे होते हैं!

जाट और गुर्ज्जर बेवजह लड़ने वाले होते हैं!

मारवाड़ी लालची होते हैं!

 और ना जाने ऐसी कितनी असत्य परम ज्ञान की बातें सभी हिन्दुओं को आहिस्ते - आहिस्ते सिखाई गयी!

नतीजा! हीन भावना!!

 एक दूसरे की जाति पर शक और द्वेष धीरे- धीरे आपस में टकराव होना शुरू हुआ और अंतिम परिणाम हुआ कि मजबूत, कर्मयोगी और सहिष्णु हिन्दू समाज आपस में ही लड़कर कमजोर होने लगा !

उनको उनका लक्ष्य प्राप्त हुआ ! हजारों साल से आप साथ थे! आपसे लड़ना मुश्किल था!

अब आपको मिटाना आसान है!🎯

✅ आपको पूछना चाहिए था कि अत्याचारी राजपूतों ने सभी जातियों की रक्षा के लिए हमेशा अपना खून क्यों बहाया?🙄

✅ आपको पूछना था कि अगर दलित को ब्राह्मण इतना ही गन्दा समझते थे तो बाल्मीकि रामायण जो एक दलित ने लिखा उसकी सभी पूजा क्यों करते हैं?🤔

✅ माता सीता क्यों महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहती?🤔

✅ आपने नहीं पूछा कि आपको सोने का चिड़ियाँ बनाने में मारवाड़ियों और बनियों का क्या योगदान था?☝️

✅ सभी मंदिर स्कूल हॉस्पिटल बनाने वाले लोक कल्याण का काम करने वाले बनिया होते हैं! सभी को रोजगार देने वाले बनिया होते हैं! सबसे ज्यादा आयकर देने वाले बनिया होते हैं!😳

✅ जिस डोम को आपने नीच मान लिया, उसी के हाथ से दी गई अग्नि से आपको मुक्ति क्यों मिलती है?👌

✅ जाट और गुर्जर अगर मेहनती लड़ाके नहीं होते तो आपके लिए अन्न का उत्पादन कौन करता, सेना में भर्ती कौन होता?

जैसे ही कोई किसी जाति की, कोई मामूली सी भी, बुरी बात करे, उसे टोकिये और ऐतराज़ कीजिये!🙄

याद रहे!

✅ आप और हम सिर्फ हिन्दू हैं। हिन्दू वो जो हिन्दूस्तान में रहते आये हैं।

✅ हमने कभी किसी अन्य धर्म का अपमान नहीं किया तो फिर अपने हिन्दू भाइयों को कैसे अपमानित करते हो और क्यों?

अब न अपमानित करेंगे और न होने देंगे! एक रहें सशक्त रहें!💯

मिलजुल कर मजबूत भारत का निर्माण करें! 

✅ मैं ब्राम्हण हूँ

जब मै पढ़ता हूँ और पढ़ाता हूँ!

✅ मैं क्षत्रिय हूँ

जब मैं अपने परिवार की रक्षा करता हूँ!

✅ मैं वैश्य हूँ

जब मैं अपने घर का प्रबंधन करता हूँ!

✅ मैं शूद्र हूँ

जब मैं अपना घर साफ रखता हूँ!

ये सब मेरे भीतर है इन सबके संयोजन से मैं बना हूँ!

✅ क्या मेरे अस्तित्व से किसी एक क्षण भी इन्हें अलग कर सकते हैं?

✅ क्या किसी भी जाति के हिन्दू के भीतर से ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र को अलग कर सकते हैं?

वस्त्तुतः सच यह है कि हम सुबह से रात तक इन चारों वर्णों के बीच बदलते रहते हैं!

प्रिंट मीडिया में मची अफरातफरी और भविष्य की संभावनाएं

लेखक - कृष्ण कुमार शर्मा 

पिछले एक साल यानि मार्च 2020 से मई 2021 के बीच के लॉक डाउन पीरियड में कोई 12 से 15 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए हैं । इनमे लाखों की संख्या में मीडियाकर्मी भी शामिल है। राष्ट्रीय , प्रादेशिक और जिला स्तर पर निकलने वाले अखबार के हजारों कर्मचारियों को रोज निकालेे जाने की खबरें आ रही हैं। नवभारत टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया लखनऊ एक बार फिर 90 के दशक का इतिहास दोहराने जा रहा है।लॉक डाउन के बाद पिछले साल कर्मचारियों कि छटाई की शुरुवात इंडिया टुडे जैसे बड़े ग्रुप ने की थी । पहले प्रिंट मीडिया में छटाई की फिर अपने टीवी चैनलों में । फिर जब टाइम्स ऑफ इण्डिया, नवभारत टाइम्स दिल्ली में भी बड़े पैमाने पर लोग निकाले गए तो उसकी देखा देखी हिन्दुस्तान टाइम्स, जागरण, अमर उजाला ने भी छटाई शुरू कर दी । पिछले साल टेलीग्राफ तक ने रांची के अपने सभी 30 कर्मचारियों को 6 महीने की तनख्वाह ( वो भी सिर्फ बेसिक सैलरी ) देकर हाथ में नोटिस थमा दिया कि अब कल से आने की जरूरत नहीं। सोचिए जो लोग कोराना के इस ख़तरनाक माहौल में रात दिन रिपोर्टिंग कर रहे थे , उस निष्ठा का पुरस्कार अचानक इस तरह दिया जाए तो उनके दिल पर क्या गुजरी होगी।

लॉक डाउन होते ही जब नवभारत टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया दिल्ली जैसे बड़े अखबार विज्ञापनों कि कमी के कारण 12-12 पेज के घर पर आए थे, तो पिछले साल इन्हीं दिनों
फेसबुक पर मैंने एक बड़ा लेख लिखा था कि कोराना कि सबसे ज्यादा मार देश के प्रिंट मीडिया यानि अखबारों पर पड़ने वाली है । आने वाले दिन अखबारों और उनमें काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बड़े संकट के होंगे। संभव है कई अखबार बंद भी ही सकते हैं । वहीं अपशकुनी आशंका बाद में वास्तविकता में तब्दील हुई और उसका क्रम अब भी जारी है ।

यह हैरान करने वाली बात है कि जिन अखबारों पर देश और दुनिया में हो रहे शोषण और बुराइयों को उजागर करने की जिम्मेदारी है , वे खुद अपने कर्मचारियों के शोषण में बुरी तरह निमग्न हो गए हैं। वो भी तब जब कि बड़े समाचार पत्र समूहों का मुनाफा लगातार बढ़ रहा था। मेरे सामने 90 के दशक में भी नवभारत टाइम्स लखनऊ में 92 लोगों की एक ही दिन में नौकरी चली गई थी और एक अच्छा खासा चलता हुआ अखबार मालिकों ने अपनी ऐंठ के चलते अचानक बंद कर दिया। इस तरह के असंवेदनशील फैसले से कितने परिवार मुश्किल में पड़ जाएंगे ये अमीरी के नशे में डूबे मालिकान जरा भी नहीं सोचते।

मेरा ऐसा मानना है कि इन दिनों सरकारी नौकरी को छोड़कर प्राइवेट सेक्टर में अब किसी की भी आजीविका सुरक्षित नहीं। सभी को मानसिक रूप से अपने आपको तैयार कर लेना चाहिए कि उनका मालिक किसी भी दिन उनकी नौकरी छीन सकता है।इसलिए सभी को भले ही कोई छोटा मोटा ही सही अपने निजी व्यवसाय की तरफ अपने आपको केन्द्रित कर लेना चाहिए।

अखबार की दुनिया में आगे क्या होगा ? ____________________________________
अगर आगामी संभावनाओं पर गंभीरता से सोचे तो प्रिंट मीडिया में अपने लंबे अनुभव के आधार पर मै कह सकता हूं कि अखबार के मालिकान और इसके व्यावसायिक पक्ष यानि सर्कुलेशन और एडवरटाइजमेंट से जुड़े मैनेजमेंट के प्रमुख अब अखबारों को जिंदा रखने के लिए उसे लगभग रद्दी के भाव या मुफ्त देना भी शुरू कर सकते हैं। इससे भी बात अगर नहीं बनती है तो पाठक को अखबार पढ़ने के लिए पैसा भी दे सकते हैं । लोगों को आज मेरी यह बात चौंकाने वाली लग सकती है लेकिन लिख कर रख लीजिए आगे यही होगा।
इस दावे के पीछे अखबार व्यवसाय से जुड़ा इसका विशिष्ठ अर्थशास्त्र है,जिसे मैं सामान्य पाठकों कोयहां संक्षेप में समझाने का प्रयास करूंगा । अखबार के सर्कुलेशन यानि बेचने में तो अभी से नहीं युगों से नुकसान उठा रहे हैं अखबार के प्रकाशक। जितनी लागत में एक अखबार छपता है उसकी एक चौथाई कीमत भी अखबार को बेंचकर नहीं निकलती। टाइम्स ऑफ इंडिया नई दिल्ली का एक अखबार का छपाई मूल्य यानि कागज और छपाई में ही 12 रुपए का पड़ता है । इसके वितरण पर आने वाला खर्च और एजेंट कमीशन (33% ) भी जोड़ ले तो प्रकाशक को 2 रुपए भी एक अखबार बैंचकर नहीं मिलता। यह दूसरे उत्पाद जैसे साबुन या टूथपेस्ट की तरह नहीं है कि जितनी ज्यादा मात्रा में उत्पादन करोगे उसकी प्रोडक्शन कॉस्ट कम हो जाएगी। अखबार का अर्थशास्त्र ठीक इसके उल्टा है ।जितना छापोगे प्रति कॉपी उतना घाटा बढ़ेगा । इनकी आमदनी का सबसे प्रमुख और बड़ा जरिया विज्ञापन ही है । ज्यादा से ज्यादा विज्ञापनों के लिए बड़ा घाटा उठाकर भी अधिकाधिक सर्कुलेशन बढ़ाना सभी अखबार मालिकों की सार्वकालिक मज़बूरी रही है । हां यह जरूर है कि आने वाले दिनों में ये चुनौती पहले कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी। वे अब "एबीसी" (ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन से प्रमाणित प्रसार संख्या) यानि आधिकारिक प्रतियों की सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहेंगे । कहने का मतलब कि वो " एबीसी" के अनुसार अपनी कमर्शियल और सरकारी विज्ञापन दर बढाकर अपनी आमदनी को लगातार बढ़ाने की कोशिश करेगे और इसकी खातिर सर्कुलेशन के मद में थोड़ा और घाटा बढ़ाने से भी पीछे नहीं हटेंगे। तो दोस्तो तैयार रहिए आने वाले दिनों में अखबार फ्री पढ़ने के लिए। इसके ऑनलाइन डिजिटल संस्करण के माध्यम से भी कुछ कमाई करने के प्रयास में सभी प्रकाशन समूह बड़ी गंभीरता से जुट गए हैं क्योंकि इसमें अखबार को फायदा ही फायदा है। इस माध्यम में ना अखबार को छापने का झंझट है और ना उसे बेचने का। यानि जिस मद में प्रकाशन समूह को सबसे ज्यादा घाटा उठाना पड़ता है उसका इस ऑनलाइन डिजिटल संस्करण में कोई वास्ता ही नहीं।
आज भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मुकाबले भारत में प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता और लोकप्रियता पूरी तरह बरकरार है । विस्तार से समाचार विश्लेषण जो एक अखबार कर सकता है वो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बूते के बाहर है और आगे भी रहेगा। लोग अखबार में छपी उपयोगी सामग्री का संकलन भी कर सकते हैं और करते भी है। बस आज जरूरत है अच्छी और पठनीय सामग्री परोसने की जिसमे कुछ अरसे से पराभव साफ दिखाई दे रहा है ।

सबसे ज्यादा दिक्कत आने वाली है सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर रहने वाले छोटे और मध्यम दर्जे की पत्र पत्रिकाओं को ।क्योंकि आने वालों दिनों में सरकारी विज्ञापनों की आमद में बहुत बड़ी कमी आने वाली है ।राज्य सरकारों के जन संपर्क निदेशालयों की बात छोड़िए सूचना प्रसारण मंत्रालय से संबद्ध "डीएवीपी " तक ने दो साल से अखबारों को सरकारी विज्ञापनों का भुगतान नहीं किया है । अस्तु सबसे ज्यादा जद्दोजहद छोटे पत्र पत्रिकाओं को ही करनी पड़ेगी अपने आपको जिंदा रखने के लिए। पिछले दिनों जबलपुर से निकलने वाली संग्रहणीय पत्रिका "पहल" के बंद होने को मैं हिंदी पत्रकारिता का दुर्भाग्य मानता हूं ।


साभार - फेसबुक 

Friday, July 2, 2021

खुशी फाउंडेशन एवं रोटरेक्ट क्लब कानपुर स्टार के तत्वावधान मैं राधे राधे रसोई का सफल उद्घाटन किया गया


कानपुर आज “खुशी फाउंडेशन” एवं रोटरेक्ट क्लब कानपुर स्टार के तत्वावधान में “राधे-राधे रसोई” का विधिवत उद्घाटन पराग दूध डेयरी तनिष्क शोरूम के सामने निराला नगर में डॉक्टर वीना आर्य पटेल जिला अध्यक्ष भाजपा दक्षिण व विधायक महेश त्रिवेदी के कर कमलों द्वारा किया गया |

फाउंडेशन के महामंत्री दीपक अग्रवाल तथा क्लब कानपुर स्टार के प्रमुख सलाहकार राजीव अग्रवाल ने बताया कि राधे राधे रसोई में प्रतिदिन 365 दिन मात्र ₹10 में दोपहर 12:30 बजे से जरूरतमंदों को सात्विक भोजन उपलब्ध कराया जाएगा तथा भोजन की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा संरक्षक जय कुमार अग्रवाल ने रसोई चलने के उद्देश्य बताएं एवं जरूरत को देखते हुए आगे प्लेट बढ़ाने की भी बात बताई |

विधायक महेश त्रिवेदी ने सस्ती लागत पर जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने के इस कार्य को जरूरी बताया तथा बीना आर्या ने भी हर संभव मदद का आश्वासन दिया, इसी के साथ पर्यावरण को बचाने के प्रयास में वृक्षारोपण कार्यक्रम भी किया गया तथा रोटरेक्ट के मेंबर्स ने वृक्षों की देखभाल करने का संकल्प भी लिया कार्यक्रम का संचालन सुशील चक्र ने व अतिथियों का स्वागत अंजली श्रीवास्तव ने किया गौरव तिवारी ने आए हुए सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया |

रसोई के सेवादारों का पटका पहना कर सम्मान किया गया तथा आए हुए अतिथियों को माला पहनाकर और तुलसी के पौधे देकर सम्मान किया गया कार्यक्रम में प्रमुख रूप से ललित कुमार अग्रवाल, पीएन जैन, बीके त्रिपाठी, के के मिश्रा, जुबेर अहमद, अतुल मिश्रा, राहुल गुप्ता, अमन श्रीवास्तव, मयंक श्रीवास्तव, कपिल द्विवेदी, पुष्पेंद्र त्रिवेदी, देवांश भाटिया, कमल शर्मा, जितेश सिरवानी, प्रेम शंकर गुप्ता, स्नेहा विशेष रूप से मौजूद रहे |

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